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ग़ज़ल
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हमारे बा'द अब महफ़िल में अफ़्साने बयाँ होंगे
बहारें हम को ढूँढेंगी न जाने हम कहाँ होंगे
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
सिर्फ़ इस शौक़ में पूछी हैं हज़ारों बातें
मैं तिरा हुस्न तिरे हुस्न-ए-बयाँ तक देखूँ
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
हम ने जो तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ की है क़फ़स में ईजाद
'फ़ैज़' गुलशन में वही तर्ज़-ए-बयाँ ठहरी है