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ग़ज़ल
पोशीदा अजब ज़ीस्त का इक राज़ है मुझ में
बे-पर हूँ मगर जुरअत-ए-परवाज़ है मुझ में
हामिद मुख़्तार हामिद
ग़ज़ल
ये भी इक ए'जाज़ था 'मसऊद' हुस्न-ए-दोस्त का
देखते ही देखते होश आ गया बीमार को
सय्यद मसूद हसन मसूद
ग़ज़ल
इश्क़ की दुनिया में इक हंगामा बरपा कर दिया
ऐ ख़याल-ए-दोस्त ये क्या हो गया क्या कर दिया
एहसान दानिश
ग़ज़ल
क्यूँ किसी रह-रौ से पूछूँ अपनी मंज़िल का पता
मौज-ए-दरिया ख़ुद लगा लेती है साहिल का पता
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
रफ़्ता रफ़्ता ख़्वाहिशों को मुख़्तसर करते रहे
रफ़्ता रफ़्ता ज़िंदगी को मो'तबर करते रहे
सुहैब फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
यूँ तो सब दुनिया में दुनिया हर-इक महफ़िल में है
मैं हूँ जिस दुनिया में वो दुनिया तुम्हारे दिल में है