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ग़ज़ल
मुझे रंग दे न सुरूर दे मिरे दिल में ख़ुद को उतार दे
मिरे लफ़्ज़ सारे महक उठें मुझे ऐसी कोई बहार दे
इन्दिरा वर्मा
ग़ज़ल
वो अजीब शख़्स था भीड़ में जो नज़र में ऐसे उतर गया
जिसे देख कर मिरे होंट पर मिरा अपना शेर ठहर गया
इन्दिरा वर्मा
ग़ज़ल
ग़ज़ल तुम को सुनाने के बहाने ढूँड लेता हूँ
मैं यूँ ही मुस्कुराने के बहाने ढूँड लेता हूँ
चन्द्र शेखर वर्मा
ग़ज़ल
कभी मुड़ के फिर इसी राह पर न तो आए तुम न तो आए हम
कभी फ़ासलों को समेट कर न तो आए तुम न तो आए हम
इन्दिरा वर्मा
ग़ज़ल
शिकस्ता-दिल अँधेरी शब अकेला राहबर क्यूँ हो
न हो जब हम-सफ़र कोई तो अपना भी सफ़र क्यूँ हो
इन्दिरा वर्मा
ग़ज़ल
कहीं चंदन महकता है कहीं केसर महकता है
ये ख़ुशबू है बुज़ुर्गों की जो मेरा घर महकता है