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नज़्म
जबीन-ए-वक़्त पर कैसी शिकन है हम नहीं समझे
कोई क्यूँ कर हरीफ़-ए-इल्म-ओ-फ़न है हम नहीं समझे
राशिद बनारसी
नज़्म
अब तो लाज़िम है कि हों बेदार अबना-ए-वतन
हो दिलों में जज़्बा-ए-मिल्लत-परस्ती जोश-ज़न
सफ़ीर काकोरवी
नज़्म
वो परस्तारान-ए-आज़ादी शहीदान-ए-वतन
ज़ीनत-ए-हिन्दोस्ताँ होना था जिन का बाँकपन
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
ऐ वतन तेरी मोहब्बत क़ुदरतन इस दिल में है
तेरे एहसानात का नग़्मा मिरी महफ़िल में है
अख़्तर हुसैन शाफ़ी
नज़्म
ऐ ख़ाक-ए-हिंद तेरी अज़्मत में क्या गुमाँ है
दरिया-ए-फ़ैज़-ए-क़ुदरत तेरे लिए रवाँ है
चकबस्त ब्रिज नारायण
नज़्म
एक जिस्म-ए-ना-तवाँ इतनी दबाओं का हुजूम
इक चराग़-ए-सुब्ह और इतनी हवाओं का हुजूम