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नज़्म
दबाना चाहते हैं इत्र की ख़ुश्बू से जो बातिन की बदबू में
जिन्हें कीड़ों ने कीड़ा कर दिया है
अहसन अली ख़ाँ
नज़्म
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
आब-ओ-गिल तेरी हरारत से जहान-ए-सोज़-अो-साज़़
अब्लह-ए-जन्नत तिरी तालीम से दाना-ए-कार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मुज़्तरिब है तू कि तेरा दिल नहीं दाना-ए-राज़
गुफ़्त रूमी हर बना-ए-कुहना कि-आबादाँ कुनंद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हवाएँ मस्त-कुन ख़ुशबुओं से मामूर कर दी हैं
वो हाकिम क़ादिर-ए-मुतलक़ है यकता और दाना है
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
जिसे दबाने के ब'अद उस को ग़द्र कहने लगे
ये अहल-ए-हिन्द भी होते हैं किस क़दर मासूम