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नज़्म
शुक्र शिकवे को किया हुस्न-ए-अदा से तू ने
हम-सुख़न कर दिया बंदों को ख़ुदा से तू ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अब भी दिलकश है तिरा हुस्न मगर क्या कीजे
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हर इक सम्त अब अनोखे लोग हैं और उन की बातें हैं
कोई दिल से फिसल जाती कोई सीने में चुभ जाती
मीराजी
नज़्म
डैडी के सूट पहन कर हम सोफ़ों पर डांस नहीं करते
सारे घर की बुनियादों को अब हम ने हिलाना छोड़ दिया
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
फिर उसी वादी-ए-शादाब में लौट आया हूँ
जिस में पिन्हाँ मिरे ख़्वाबों की तरब-गाहें हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
पहले थीं वो शोख़ियाँ जो आफ़त-ए-जाँ हो गईं
''लेकिन अब नक़्श-ओ-निगार-ए-ताक़-ए-निस्याँ हो गईं''