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नज़्म
ग़ाफ़िल आदाब से सुक्कान-ए-ज़मीं कैसे हैं
शोख़ ओ गुस्ताख़ ये पस्ती के मकीं कैसे हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
अब यहाँ मेरी गुज़र मुमकिन नहीं मुमकिन नहीं
किस क़दर ख़ामोश है ये आलम-ए-बे-काख़-ओ-कू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
साकिनान-ए-अर्श-ए-आज़म की तमन्नाओं का ख़ूँ
इस की बर्बादी पे आज आमादा है वो कारसाज़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
चश्म-ए-दिल वा हो तो है तक़्दीर-ए-आलम बे-हिजाब
दिल में ये सुन कर बपा हंगामा-ए-मशहर हुआ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
उड़ा ली क़ुमरियों ने तूतियों ने अंदलीबों ने
चमन वालों ने मिल कर लूट ली तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आज तक सुर्ख़ ओ सियह सदियों के साए के तले
आदम ओ हव्वा की औलाद पे क्या गुज़री है?
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
नग़्मा-ए-बुलबुल हो या आवाज़-ए-ख़ामोश-ए-ज़मीर
है इसी ज़ंजीर-ए-आलम-गीर में हर शय असीर