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नज़्म
रुख़्सत हुआ वो बाप से ले कर ख़ुदा का नाम
राह-ए-वफ़ा की मंज़िल-ए-अव्वल हुई तमाम
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
सीनों से लग रही हैं जो हैं पिया की प्यारी
छाती फटे है उन की जो हैं बिरह की मारी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
ऐ ख़ाक-ए-हिंद तेरी अज़्मत में क्या गुमाँ है
दरिया-ए-फ़ैज़-ए-क़ुदरत तेरे लिए रवाँ है
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
हुब्ब-ए-क़ौमी का ज़बाँ पर इन दिनों अफ़्साना है
बादा-ए-उल्फ़त से पुर दिल का मिरे पैमाना है
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
घटा है घनघोर रात काली फ़ज़ा में बिजली चमक रही है
मिलन का सीना उभार पर है बिरह की छाती धड़क रही है
नज़ीर बनारसी
नज़्म
आसफ़ुद्दौला-ए-मरहूम की तामीर-ए-कुहन
जिस की सनअ'त का नहीं सफ़्हा-ए-हस्ती पे जवाब
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
मौत ने रात के पर्दे में किया कैसा वार
रौशनी-ए-सुब्ह वतन की है कि मातम का ग़ुबार