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नज़्म
जो मरहलों में साथ थे वो मंज़िलों पे छुट गए
जो रात में लुटे न थे वो दोपहर में लुट गए
आमिर उस्मानी
नज़्म
जोश मलीहाबादी
नज़्म
क़ैद भी कर दें तो हम को राह पर लाएँगे क्या
ये जुनून-ए-इश्क़ के अंदाज़ छुट जाएँगे क्या
जोश मलीहाबादी
नज़्म
जबीन-ए-नूर जिस पे पड़ रही है नर्म छूट सी
ख़ुद अपनी जगमगाहटों की कहकशाँ लिए हुए