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नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इस से पहले कि मिरे इश्क़ पर इल्ज़ाम धरो
देख लो हुस्न की फ़ितरत में तो कुछ झोल नहीं
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
किसी की आँख में है कौन सा चेहरा मिरा ये भूल जाता हूँ
मगर इल्ज़ाम देना हाफ़िज़े को भी ग़लत होगा
शारिक़ कैफ़ी
नज़्म
ब-हर-उनवाँ यही इक पेशवा-ए-हुस्न-ओ-ख़ूबी है
ग़लत है एशिया में मोरिद-ए-इल्ज़ाम है उर्दू
माजिद-अल-बाक़री
नज़्म
आ तेरे बालों से शुआ'ओं के इल्ज़ाम उठा लूँ
तुम अपनी सूरत पहाड़ की खोह में इशारा कर आए
सारा शगुफ़्ता
नज़्म
शाद आरफ़ी
नज़्म
मुझे इस अज़ाब से निकाल दे बस
तेरी दुनिया मैं धोके फ़रेब और इल्ज़ाम क्यूँ हैं