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नज़्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़िंदगी मुज़्मर है तेरी शोख़ी-ए-तहरीर में
ताब-ए-गोयाई से जुम्बिश है लब-ए-तस्वीर में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फिर इसी तरह जहाँ होगा मुक़ाबिल पैहम
साया-ए-ज़ुल्फ़ का और जुम्बिश-ए-बाज़ू का सफ़र
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
भूखों की नज़र में बिजली है तोपों के दहाने ठंडे हैं
तक़दीर के लब को जुम्बिश है दम तोड़ रही हैं तदबीरें
जोश मलीहाबादी
नज़्म
वो कुछ नहीं है अब इक जुम्बिश-ए-ख़फ़ी के सिवा
ख़ुद अपनी कैफ़ियत-ए-नील-गूँ में हर लहज़ा
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
हुई जुम्बिश अयाँ ज़र्रों ने लुत्फ़-ए-ख़्वाब को छोड़ा
गले मिलने लगे उठ उठ के अपने अपने हमदम से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़रा होंटों को जुम्बिश और लफ़्ज़ों को रिहाई दो
अकेला पड़ गया हूँ मैं ज़रा मेरी सफ़ाई दो
मनोज अज़हर
नज़्म
जुम्बिश हुई लबों को भरी एक सर्द आह
ली गोशा-हा-ए-चश्म से अश्कों ने रुख़ की राह
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
मेरी हर साँस पे वो उन की तवज्जोह क्या ख़ूब
मेरी हर बात पे वो जुम्बिश-ए-सर आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कैसे इक फ़र्द के होंटों की ज़रा सी जुम्बिश
सर्द कर सकती थी बे-लौस वफ़ाओं के चराग़