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नज़्म
तिरे अशआ'र पढ़ता हूँ तिरे नग़्मात गाता हूँ
कमाल-ए-कैफ़-ओ-फ़र्त-ए-बे-खु़दी में झूम जाता हूँ
शातिर हकीमी
नज़्म
ख़ुशा वो दौर-ए-बे-ख़ुदी कि जुस्तुजू-ए-यार थी
जो दर्द में सुरूर था तो बे-कली क़रार थी
आमिर उस्मानी
नज़्म
इब्न-ए-अदना को इक बार फिर से बुलाया गया
इब्न-ए-अदना कि अपने कमाल-ए-महारत में बे-मिस्ल था