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नज़्म
दिए दिखाते हैं ये भूली-भटकी रूहों को
मज़ा भी आता था मुझ को कुछ उन की बातों में
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
अब सब्र के मीठे फल आहें भर भर कर खाते हैं
मालन को बना बैठे ख़ाला माली को रुलाना छोड़ दिया
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
हैं यक-बारगी गूँज उठते ख़ला ओ मला के जलाजिल
जलाजिल के नग़्मे बहम ऐसे पैवस्त होते हैं जैसे
नून मीम राशिद
नज़्म
हामी-ए-जौर-ओ-सितम हर तरह माला-माल था
जिस की लाठी थी उसी की भैंस थी ये हाल था
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
पाकिस्तान से आए मुहाजिर गेंदे की टूटी माला
पानी में चप्पू की शप शप बातों के टूटे टुकड़े