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नज़्म
इन में सच्चे मोती भी हैं, इन में कंकर पत्थर भी
इन में उथले पानी भी हैं, इन में गहरे सागर भी
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
फिर वो टूटा इक सितारा फिर वो छूटी फुल-जड़ी
जाने किस की गोद में आई ये मोती की लड़ी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
क्या बधिया भैंसा बैल शुतुर क्या गौनें पल्ला सर-भारा
क्या गेहूँ चाँवल मोठ मटर क्या आग धुआँ और अँगारा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
और अब चर्चे हैं जिस की शोख़ी-ए-गुफ़्तार के
बे-बहा मोती हैं जिस की चश्म-ए-गौहर-बार के
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दफ़्न तुझ में कोई फ़ख़्र-ए-रोज़गार ऐसा भी है
तुझ में पिन्हाँ कोई मोती आबदार ऐसा भी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
याँ हुस्न की बर्क़ चमकती है याँ नूर की बारिश होती है
हर आह यहाँ इक नग़्मा है हर अश्क यहाँ इक मोती है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तितली का नाज़-ए-रक़्स ग़ज़ाला का हुस्न-ए-रम
मोती की आब गुल की महक माह-ए-नौ का ख़म