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नज़्म
कभी डाँटो कि मैं इस तरह क्यूँ पैसे उड़ाता हूँ
जिन्हें तुम टोकते थे मैं वो सारे काम करता हूँ
मनोज अज़हर
नज़्म
पैसे का पुजारी दुनियाँ में सच पूछो तो इंसाँ हो न सका
दौलत कभी ईमाँ ला न सकी सरमाया मुसलमाँ हो न सका
नुशूर वाहिदी
नज़्म
जब तलक ज़िंदा रहे पैसे न थे करने को ख़र्च
मर गए तो हो रही है मिर्ज़ा-'ग़ालिब' पर रिसर्च