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नज़्म
फ़ित्ना-ए-ख़ुफ़ता जगाए उस घड़ी किस की मजाल
क़ैद हैं शहज़ादियाँ कोई नहीं पुर्सान-ए-हाल
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
नहीं फ़ारूक़ी! इस धरती को मैं हरगिज़ न छोड़ूँगा
मुझे जिस दौर ने पाला है, वो बे-शक पुराना है
सलाम मछली शहरी
नज़्म
रुख़्सत हुआ वो बाप से ले कर ख़ुदा का नाम
राह-ए-वफ़ा की मंज़िल-ए-अव्वल हुई तमाम
चकबस्त ब्रिज नारायण
नज़्म
दिल है पहलू में तो पैदा शेवा-ए-तुरकाना कर
जौर हफ़्त-अफ़्लाक के होते रहें परवा न कर