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नज़्म
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
जहाँ में सब से ऊँचा इक मोहब्बत का शिवाला है
जहाँ देखो जिधर देखो उसी का बोल-बाला है
सुमन ढींगरा दुग्गल
नज़्म
दैर को काबा तो काबा को शिवाला कर दूँ
ज़र्रे-ज़र्रे को जहाँ के तह-ओ-बाला कर दूँ
ख्वाजा मंज़र हसन मंज़र
नज़्म
दिल में इक शोला भड़क उट्ठा है आख़िर क्या करूँ
मेरा पैमाना छलक उट्ठा है आख़िर क्या करूँ