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नज़्म
संसार के सारे मेहनत-कश खेतों से मिलों से निकलेंगे
बे-घर बे-दर बे-बस इंसाँ तारीक बिलों से निकलेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
गुमाँ-आबाद हस्ती में यक़ीं मर्द-ए-मुसलमाँ का
बयाबाँ की शब-ए-तारीक में क़िंदील-ए-रुहबानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तू ने क्या देखा नहीं मग़रिब का जमहूरी निज़ाम
चेहरा रौशन अंदरूँ चंगेज़ से तारीक-तर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जलाना है मुझे हर शम-ए-दिल को सोज़-ए-पिन्हाँ से
तिरी तारीक रातों में चराग़ाँ कर के छोड़ूँगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये मेरा झोंपड़ा तारीक है गंदा है परागंदा है
हाँ कभी दूर दरख़्तों से परिंदों की सदा आती है
नून मीम राशिद
नज़्म
ये भीगा हुआ गर्म ओ तारीक बोसा
अमावस की काली बरसती हुई रात जैसे उमड़ती चली आ रही है
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
आ कि ज़ुल्मत में कोई नूर का सामाँ कर लूँ
अपने तारीक शबिस्ताँ को शबिस्ताँ कर लूँ