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नज़्म
तो तेरी निगाहों में वो ताबनाकी
थी मैं जिस की हसरत में नौ साल दीवाना फिरता रहा हूँ
नून मीम राशिद
नज़्म
किस की नौ-मीदी पे हुज्जत है ये फ़रमान-ए-जदीद
है जिहाद इस दौर में मर्द-ए-मुसलमाँ पर हराम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मुझे तुम अपनी बाँहों में जकड़ लो और मैं तुम को
किसी भी दिल-कुशा जज़्बे से यकसर ना-शनासाना
जौन एलिया
नज़्म
हर आन यहाँ सहबा-ए-कुहन इक साग़र-ए-नौ में ढलती है
कलियों से हुस्न टपकता है फूलों से जवानी उबलती है