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नज़्म
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की
ख़ुम, शीशे, जाम, झलकते हों तब देख बहारें होली की
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
बादा है नीम-रस अभी शौक़ है ना-रसा अभी
रहने दो ख़ुम के सर पे तुम ख़िश्त-ए-कलीसिया अभी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कोई कहता है कि बस उस ने बिगाड़ी नस्ल-ए-क़ौम
कोई कहता है कि ये है बद-ख़िसाल-ओ-बद-मआश
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों
साहिर लुधियानवी
नज़्म
अमाँ कैसी कि मौज-ए-ख़ूँ अभी सर से नहीं गुज़री
गुज़र जाए तो शायद बाज़ू-ए-क़ातिल ठहर जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जब लगाया हक़ का नारा दार पर खींचा गया
नख़्ल-ए-सनअ'त इस के ख़ूँ की धार पर सींचा गया
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
सीना-ए-दहर के नासूर हैं कोहना नासूर
जज़्ब है उन में तिरे और मिरे अज्दाद का ख़ूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
नब्ज़-ए-हस्ती का लहू काँपते आँसू में नहीं
उड़ने खुलने में है निकहत ख़म-ए-गेसू में नहीं