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सेहरा

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    स्टोरीलाइन

    एक ऐसी विधवा औरत की कहानी, जो दिन-रात मेहनत करके अपने बच्चों को कामयाब बनाती है। बेटियों की शादी के बाद वह अपने दो बेटों के साथ रहती है। उसका बड़ा बेटा उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड चला जाता है और शादी करके वहीं अपना घर बसा लेता है। माँ यह सोच कर परेशान होती है कि अगर छोटा बेटा भी उच्च शिक्षा के लिए विदेश चला गया तो बुढ़ापे में वह अकेली रह जाएगी। लेकिन छोटा बेटा ऐसा नहीं करता, वह अपनी माँ का हर तरह से ख़्याल रखता है, वह हमेशा माँ के साथ रहता है, यहाँ तक कि वह अपनी माँ के साथ ही सोता भी है। अपनी मोहब्बत के विभाजन के डर से वह अपनी शादी से भी इंकार कर देता है। माँ ने बेटे की शादी करा दी और वह सुहागरात को भी अपनी माँ के कमरे में ही सोता है।

    कल साजिद मियां का निकाह था मगर ख़ुशी की बजाय उनके चेहरे पर वहशत बरस रही थी। वो अपनी दोनों बहनों से बार-बार कह रहे थे, बड़ी बजिया, आप अच्छी तरह सुन लें मेरा बिस्तर हमेशा की तरह अम्मां बी के कमरे में बिछा रहेगा। उसे कोई नहीं हटाएगा और आप भी सुन लें छोटी बजिया, अब आप मेरा बिस्तर उठवाने की बात नहीं करेंगी, क्या समझीं आप?

    तो क्या तुम अब भी दूध की बोतल नहीं भूले? छोटी बजिया की कतरनी जैसी ज़बान चलती और वो ज़ोर ज़ोर से क़हक़हे लगाने लगतीं और साजिद मियां दाँत पीस कर रह जाते। घर में ऐसी धमाचौकड़ी मची थी कि कोई किसी की बात समझ रहा था सुन रहा था। रिश्ते-नाते की भावजों और ख़ानदान की ढेरों लड़कियों का झमगट ढोल पीट पीट कर गाये चले जा रहा था, पढ़के अलहम्द जो चेहरे पे सजाया सेहरा...

    अपना सेहरा सुन सुन कर भी साजिद मियां की आँखों की वहशत कम हुई। ऐसा लगता कि सेहरा गुलाब के फूलों की बजाय कांटों से गूँधा गया है और वो कांटे उनकी आँखों में चुभ रहे हैं। मोटी मोटी बादामी पुतलियों वाली बेचैन आँखें घूम फिर कर अपनी अम्मां बी को देखे जा रही थीं। वो थकी हुई, निढाल, लुटा लुटा सा चेहरा, पैरों पर लिहाफ़ डाले अपने बिस्तर पर बैठी थीं मगर जब लड़कियां लहक कर गातीं, दौड़ कर सेहरे की अम्मां ने बलाऐं ले लीं, अरे अम्मां ने बलाऐं ले लीं। तो उनके बचे खुचे हिलते हुए दाँत सेहरे की लड़ी की तरह होंटों पर बिखर जाते।

    मैं कितनी बार कहूँ कि अब आप थक गई हैं, ज़रा देर को सो जाइये। मैं भी लेट जाता हूँ। साजिद मियां अपने बिस्तर पर बैठ कर जूतों की डोरियां खोलने लगे।

    लो भला मैं कैसे सो जाऊं। अभी तो बहुत से काम पड़े हैं, छुहारों के थाल पोशों पर गोटा टांकना है। सेहरे और फूलों के ज़ेवर का आर्डर दिलवाना है। सेहरा घुटनों से नीचा हो, लड़कियां तो बस गाने बजाने में जुटी हुई हैं।

    अब भला अम्मां बी से कौन कहता कि जिस तरह तमाम काम उनकी दोनों बेटियों ने अपनी मर्ज़ी से कर लिए थे, उसी तरह रात को गाने बजाने थाल पोशों पर सुनहरी गोटे की बजाय दो पहली गोटा टॉक दिया था। सेहरे का आर्डर भी दिया जा चुका था। ऐसा सेहरा जो क़दमों को छूए। अम्मां बी की इस बात को कौन मानता था कि फूल पैरों तले आएं तो फूलों की बेहुरमती होती है।

    सब काम हो जाएंगे अम्मां बी। आप पहले ही हुक्म दे चुकी हैं। दिन के दो बज रहे हैं अब आप ज़रा देर आराम कीजिए। “ए बड़ी बजिया, उन्होंने ज़ोर से आवाज़ दी, बड़ी बजिया। कोई नहीं सुनता। छोटी बजिया। ख़ुदा के वास्ते थोड़ी देर के लिए ढोल उठा दीजिए, अम्मां बी को सो जाने दीजिए।

    कोई नहीं सोएगा, ढोल नहीं उठेगी। छोटी बजिया ने चीख़ कर जवाब दिया। अब सारी आवाज़ों में उनकी आवाज़ सबसे ऊंची थी, दौड़ कर अम्मां ने सेहरे की बलाएं ले लीं, अरे बहनों ने बलाएं ले लीं। पढ़के अलहम्द जो चेहरे पे सजाया सेहरा।

    मत रोको बेटे...गाने दो। ये मेरी आख़िरी ख़ुशी है, नींद का क्या है, जब फ़ुर्सत मिले सो जाऊँगी। अम्मां बी ने बड़ी मुहब्बत से साजिद को देखा और फिर बिस्तर पर लेट कर पांव फैला दिये। साजिद मियां झपट कर उठे और कमरे के सब दरवाज़े बंद कर दिये। अब आवाज़ें जैसे कहीं दूर से रही थीं।

    बस अब आप सो जाएं। साजिद ने अम्मां बी की तरफ़ से करवट ले ली। उन्हें अच्छी तरह मालूम था कि अम्मां बी अगर दोपहर को सोएँ तो उनकी तबीयत ख़राब हो जाती है। यही वजह थी कि वो डिस्पेंसरी से एक डेढ़ बजे ज़रूर घर जाते, उन्हें ये भी पता था कि जब तक वो ख़ुद भी अपने बिस्तर पर नहीं लेटेंगे, अम्मां बी को नींद नहीं आएगी।

    जनरेशन गैप के इस शिद्दत पसंद ज़माने में बहुत से लोग साजिद मियां को हैरत से देखते। शायद उन्हें मुहज़्ज़ब मुल्कों के वो बूढ़े याद जाते होंगे जो छितरे सफ़ेद बालों वाले सरों पर पुरानी वज़ा के हैट रखे राहों में पड़ी हुई बेंचों पर पहरों बैठे रहते हैं। तरसती हुई निगाहों से दुनिया की हमा-हामी को देखते हैं। फिर जाने उनके जी में क्या ख़याल आता है कि हैट आँखों पर खींच कर ऊँघने लगते हैं। कोई नहीं पूछता कि तुम इतनी देर से यहां क्यों बैठे हो और अब तुम अपने हैटों की दुनिया में छुप कर कौन से ख़्वाब देख रहे हो।

    साजिद... अम्मां ने हौले से पुकारा।

    जी अम्मां बी। साजिद मियां ने अम्मां बी की तरफ़ करवट बदल ली।

    मैं सोच रही हूँ कि अब तुम्हारा पलंग यहां से उठवा कर स्टोर में रखवा दूं?

    अब इसकी यहां क्या ज़रूरत रह गई है।

    अम्मां बी अपनी भर्राई हुई आवाज़ पर क़ाबू पाने की कोशिश कर रही थीं।

    छोटी बजिया ने भी यही कुछ कहा था। बड़ी बजिया ने भी यही फ़रमाया था और मैंने उन दोनों से कहा था कि ये पलंग यहीं बिछा रहेगा। आप भी सुन लें इस पलंग को यहां से कोई नहीं हटा सकता। उनकी आवाज़ में बेहद दुख था।

    अरे पगले ये बिस्तर तो तेरी ज़ात से सजा हुआ था, तेरी वजह से मैं अकेली नहीं थी। रात सोते सोते किसी वक़्त आँख खुल जाती तो... उनकी आवाज़ भर्रा गई।

    ये बिस्तर इसी तरह सजा रहेगा अम्मां, मैं कहाँ जा रहा हूँ भला? आप ऐसी बातें मत सोचिए।

    साजिद मियां ने अम्मां बी की तरफ़ से करवट बदल ली। गर्दन तक लिहाफ़ ओढ़ा और फिर तकिए के नीचे रखे हुए मलमल के सफ़ेद झाग जैसे दुपट्टे को चेहरे पर डाल लिया। ये उनके सोने का एलान था।

    साजिद जब छोटे से थे तो बरसात के मौसम में मक्खियों के गुच्छे उनके मुँह पर कर बैठते तो अम्मां बी परेशान हो कर अपने सर से मलमल का दुपट्टा उतार कर उनका चेहरा ढांक दिया करतीं। मगर इतना ज़माना गुज़रने के बाद भी उनकी ये आदत छूटी। अम्मां का दुपट्टा आँखों पर डाले बग़ैर उन्हें नींद आती...

    मुँह छुपा कर वो तो अपने हिसाब से सोते बन गए। मगर उन्हें क्या पता था कि अम्मां बी मारे हैरत के आँखें फाड़े उन्हें किस तरह देख रही हैं। उनकी आँखों के सामने कमरे की हर चीज़ घूम रही थी। दिल पर अजीब सा हौल तारी था। उन्होंने उठ कर साथ वाले कमरे का दरवाज़ा खोलना चाहा तो दरवाज़े तक पहुंचने का रास्ता मिल रहा था। जैसे भूल-भुलय्याँ में फंस गई हों। इतनी बड़ी बात सुनने के लिए भी तो हिम्मत चाहिए। वो हड़बड़ा कर साजिद मियां के पलंग से टकराईं।

    क्या है अम्मां बी? वो जैसे कूद कर खड़े हो गए और डोलती हुई अम्मां बी को अपने बाज़ुओं में थाम कर बिस्तर पर बिठा दिया।

    ये आप किधर जा रही थीं। मैं जो कह रहा हूँ कि सो जाइए।

    नींद नहीं रही थी। मैंने सोचा लड़कियों के पास जा बैठूँ, मगर बेटे तुम तो मेरा साया बन गए हो।

    बस अब आप नहीं उठेंगी। साजिद मियां ने अम्मां को लिटा कर लिहाफ़ ओढ़ा दिया और उन्होंने भी साजिद को दिखाने के लिए झूट-मूट आँखें बंद कर लीं मगर नींद ख़ाक आती। वो एक सवाल सोचे जा रही थीं। लो भला ये कैसे हो सकता है कि उसका बिस्तर पहले की तरह कैसे सजा रह सकता है, इतनी बड़ी बात उसने कही कैसे, अगर किसी को ये बात मालूम हो जाये तो फिर...सब घने घने ताने देंगे। अम्मां से इतनी ही मुहब्बत है तो फिर शादी करने की क्या ज़रूरत है।

    तानों के ख़याल ही से अम्मां बी के रौंगटे खड़े हो गए। इतनी सर्दी में पसीने छूट गए। अम्मां बी तकिए में मुँह छुपा कर चुपके चुपके रोने लगीं। मेरे बच्चे, मेरे लाल, माँ सदक़े, माँ तेरी मुहब्बत पर से वारी। उनके होंट आहिस्ता-आहिस्ता हिल रहे थे।

    चार छोटे-छोटे बच्चों को छोड़कर अम्मां बी के शौहर ऐन-जवानी में अल्लाह को प्यारे हो गए थे। अम्मां बी ने मुहल्ले की लड़कियों को क़ुरआन शरीफ़ पढ़ा पढ़ा कर बच्चों को पाला। दोनों लड़कों को पढ़ाया। दोनों लड़कियों का जहेज़ जोड़ा। जैसे-तैसे लड़कियों की शरीफ़ घरानों में शादियां कीं। अम्मां बी जैसी नेक और समझदार बीबी की सारे ख़ानदान में धूम मची थी। माँ अगर मुसीबतों से ज़रा भी घबरा जाये तो यतीम बच्चे बहक जाते हैं मगर अम्मां बी ने तो बच्चों को कभी यतीमी का एहसास होने ही दिया। दोनों लड़कों की तालीम पर इतनी तवज्जो दी कि वो किताब का कीड़ा बन गए। माजिद मियां बड़े थे। छटी क्लास से वज़ीफ़ा लेना शुरू किया तो साजिद मियां भी मुक़ाबले पर उतर आए। माजिद मियां ने एफ़.एस.सी. नान मेडिकल का इम्तिहान दिया तो फिर वज़ीफ़े के मुस्तहिक़ क़रार पाए। साजिद ने मैट्रिक में फ़र्स्ट डिवीज़न पाई, ख़ानदान वाले मुबारक सलामत का शोर भी मचाते और जी ही जी में कुढ़ते भी। वो अपने मुस्टंडे बेटों को गले गले तक नेअमतें ठुंसाते मगर कोई भी इम्तिहान में सेकंड डिवीज़न से आगे जाता। यहां ये हाल कि दाल रोटी और कभी-कभार गाय का गोश्त खाने वाले हवा पर उड़े जा रहे थे।

    माजिद इंजीनियरिंग कॉलेज में तीसरे साल का इम्तिहान दे रहे थे कि साजिद ने एफ़.एस.सी. मेडिकल में टाप किया और आराम से मेडिकल कॉलेज में दाख़िल हो गए। उस दिन अम्मां बी ने ख़ुदा के हुज़ूर में सारा दिन इबादत में गुज़ारा।

    वक़्त जब उम्मीदों और आरज़ुओं से भरपूर हो तो गुज़रते देर नहीं लगती। माजिद ने इंजीनियरिंग कॉलेज से आख़िरी साल का इम्तिहान दिया और अव्वल कर सबको हैरान कर दिया। उन्हें इंगलैंड जाने के लिए सरकारी वज़ीफ़ा भी मिल गया। सारा ख़ानदान अम्मां बी की इस ख़ुशनसीबी पर टूट पड़ा जो कभी दो पैसों की मदद के रवादार थे। मिठाइयों के डिब्बे उठाए चले रहे थे, मगर अम्मां बी की अजीब हालत थी। वो बिलक-बिलक कर रो रही थीं, मैं नहीं जाने दूँगी। बेटियां पराई हो गईं। यही दोनों लड़के मेरी ज़िंदगी का सहारा हैं। मेरे बुढ़ापे की लकड़ी हैं। मैं किसे थाम कर चलूंगी।

    सब हैरान थे कि घर आई दौलत को कोई इस तरह ठुकराता है। सबको उनकी दानाई पर शुबहा होने लगा। सब उन्हें ख़ुदग़र्ज़ समझने लगे, बेटियों ने तो साफ़ साफ़ कह दिया कि आप माजिद भाई के रौशन मुस्तक़बिल को लात मार रही हैं। माजिद अम्मां बी को लिपटाए बड़ी मज़लूमियत से बैठे थे। वो अम्मां बी के इनकार पर ख़ामोशी इख़्तियार किए हुए थे। अम्मां ने रोते-रोते एक बार ग़ौर से उनकी आँखों में झाँका और आँसू पोंछ लिये, जाएगा, मेरा बेटा ज़रूर जाएगा। उन्होंने सबके सामने भर्राई हुई आवाज़ में एलान किया। मैं तो यूँही रो रही थी, बस यूँही।

    माजिद मियां जब जाने लगे तो सबने महसूस किया साजिद अपने भाई को रुख़्सत करने हवाई अड्डे पर भी नहीं गए। वो घर में बैठे अम्मां बी को लिपटाए उनके आँसू पोंछते रहे। उसके बाद तो वो ऐसे अम्मां बी का साया बन गए। अपना बिस्तर अम्मां के बिस्तर के क़रीब बिछा लिया। कॉलेज और फिर घर रात गए तक पढ़ते रहते। अम्मां बी के ख़र्राटे उन्हें ज़रा भी परेशान करते। कभी-कभी सोते में वो रोतीं। माजिद को आवाज़ें देतीं। तब वो किताबें छोड़कर उठते, अम्मां बी के सीने पर सर रख कर उन्हें जगाते। उनके आँसू पोंछते और अपने आँसूओं को छुपाते हुए उन्हें नींद की एक और गोली खिला देते।

    कभी कभी अम्मां बी पूछतीं, जब तुम यहां की पढ़ाई ख़त्म कर लोगे तो क्या पता तुम को भी सरकार वज़ीफ़ा दे दे। तुम पढ़ाई में हमेशा अच्छे रहे हो। तुमने हमेशा वज़ीफ़ा लिया है।

    साजिद मियां हंस पड़ते। अम्मां बी, मैं आपको छोड़ कर कहीं नहीं जा सकता। मैं ऐसे वज़ीफ़ों पर थूकता भी नहीं।

    फिर भी शक की सिल अम्मां बी के सीने को कुचलती रहती।

    बहनों ने साजिद को जब इस तरह अम्मां की पट्टी से लगा देखा तो सुलग उठीं। कोई हद भी होती है। महीनों साजिद भाई की सूरत नहीं दिखाई देती। अम्मां बी, आपने उन्हें लौंडिया बना कर घर बिठा लिया है। अल्लाह हाफ़िज़ है जो इम्तिहानों में भी पास हों।

    अम्मां बी सारी बातें ख़ामोशी से सह जातीं और इधर उधर की बातें छेड़ देतीं। बेटियों को ये भी दिखाई देता कि उनकी अम्मां कितनी लुट गई हैं। माजिद की जुदाई ने उन्हें एक दम से बूढ़ा कर दिया है। जब माजिद के ख़त आते तो पहरों उन्हें आँखों से लगाए बैठी रहतीं।

    दो साल बाद माजिद वतन वापस आए तो तोहफ़ों से लदे फंदे थे। दोनों बहनें भाई से मरऊब हो कर जैसे बिछी जा रही थीं। इतरा इतरा कर ख़ानदान वालों को तहाइफ़ दिखा रही थीं और अम्मां बी को माजिद इतना प्यारा लग रहा था कि जी चाहता उठा कर पलकों पर बिठा लें।

    इतनी आला तालीम के बाद माजिद को मुलाज़िमत तो मिल गई मगर माजिद मियां बुझ से गए। आठ-नौ सौ रुपये उनकी भंवें तले ना आते फिर भी किसी से कुछ कहा। सारा दिन जाने किन चक्करों में फिरा करते और शाम को घर आते तो अम्मां बी की गोद में सर रख कर अपने शानदार मुस्तक़बिल की बातें करते रहते। अम्मां बी इन बातों को सुनकर निहाल होती रहतीं। वो बड़े चाव से साजिद को भी इन बातों में शामिल करना चाहतीं मगर वो सर झुकाए पढ़ने में मसरूफ़ रहते।

    माजिद कभी कभी साजिद पर एतिराज़ करते, यार ये तुम लौंडियों की तरह सर झुकाए बस पढ़ते ही रहते हो। किसी वक़्त बाहर भी निकला करो। दुनिया को देखो और समझो।

    बाहर घूमे तो पढ़े ख़ाक। पता है कितनी मुश्किल पढ़ाई है। डाक्टर बनना कोई आसान काम तो नहीं। तुमको क्या मालूम, तुम्हारी जुदाई ने मुझे कितना कमज़ोर कर दिया है, जब मेरा बेटा डाक्टर बन जाएगा तो फिर मेरा ईलाज करेगा। अम्मां बी चाव से कहतीं।

    एक साल मुलाज़िमत करने के बाद माजिद ने बड़े आराम से अम्मां को बताया कि वो वापस इंगलैंड जा रहे हैं। यहां उनके इल्म का जो मुआवज़ा मिलता है वो उससे किसी तरह भी मुतमइन नहीं हो सकते, चंद लम्हों तक अम्मां बी पर सकते की सी कैफ़ियत तारी रही मगर जब माजिद ने उनकी गोद में सर रख कर उनकी इजाज़त चाही तो वो बड़ी मुश्किल से हाथ उठा कर उनके सर पर रख सकीं, उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था कि उनके जिस्म-ओ-जां का एक एक चप्पा टूट-फूट कर बिखर गया है।

    माजिद ने बड़े लाड से अम्मां बी के गले में झूल झूल कर उन्हें समझाया, अम्मां बी सिर्फ़ चंद बरसों की बात है। वहां से मैं आपको इतना कमा कर भेजूँगा कि आप माज़ी के सारे दुख भूल जाएँगी। ये तीन कमरों का पुराना मकान कोठी में बदल जाएगा। बस आप एक अच्छी सी बहू ढूंढ रखिएगा और...वो और जाने क्या कुछ कहते रहे मगर अम्मां बी ने कुछ भी सुना। उनके कानों में जैसे कहीं बहुत दूर से साएँ साएँ की आवाज़ें रही थीं।

    फिर चंद दिन बाद माजिद चले गए। दोनों बहनों और बहनोइयों ने ढेर सारी फ़रमाइशों और ख़ुशी के आँसुओं के साथ उन्हें रुख़्सत किया। उस वक़्त किसी ने भी पलट कर ये देखा कि अम्मां बी आँगन की पुरानी काई लगी दीवार से टेक लगाए क्यों चुपचाप खड़ी थीं। किसी को ये नज़र आया कि वो उस दुखिया की तरह सर से पांव तक जल रही हैं जो तो कोयला हुई राख। जब साजिद, भाई को रुख़्सत करके लौटे तो उन्होंने अम्मां बी को लिपटा लिया, अम्मां बी, मैं जो हूँ आपके पास...मोहब्बत के ठंडे छींटों ने उनमें इतनी जान डाल दी कि वो कर अपने बिस्तर पर लेट गईं और साजिद का सर अपने सीने से लगा कर माजिद को दुआएं देने लगीं।ख़ुदा करे मेरा बेटा वहां ख़ुश रहे। उस का मुस्तक़बिल चांद और तारों की तरह रौशन रहे और तुम मेरे बेटे मुझसे कभी जुदा होना।

    पंद्रह-बीस दिन बाद माजिद का ख़त आया तो अम्मां खिलखिला कर हंस पड़ीं, अरे कितना बेवक़ूफ़ है, मुझे याद करके रोता है। कोई हमेशा तो वहां नहीं रहेगा। एक साल बाद आजाएगा।

    सारा दिन ख़त को चूमती और बार-बार पढ़ती रहीं।

    एक साल के अंदर अंदर माजिद ने अम्मां बी को इतना कुछ भेजा कि उन्होंने पाँच कमरों की छोटी सी कोठी बनवा ली। फिर कमरों की तक़्सीम भी कर दी। सबसे बड़ा कमरा माजिद का। उससे छोटा साजिद का, उससे छोटा उनका अपना। कोठी बनाने के बाद वो चुपके से माजिद की दुल्हन की बरी का सामान ख़रीदने लगीं। अब उनकी ख़्वाहिश थी कि माजिद वापस जाए, वो हर एक से कहती रहतीं, मामता कोठियों में रहे या महलों में बच्चे जुदा हों तो सब खन्डर मालूम होता है।

    सारा ख़ानदान उनकी ये बातें सुनकर बड़बड़ाता, तौबा कैसी नाशुक्री माँ है। माजिद यहां रहता तो कौन से सोने के अंडे देता। क्या रखा है यहां।

    कभी कभी साजिद जवाब दे बैठते, क्या नहीं है यहां, दरख़्तों को पालो पोसो और जब वो फल दें तो दूसरे मुल्कों में खाने को भेज दो। वाह क्या बात है।

    बहनों ने ये बातें सुनीं तो पंजे झाड़ कर साजिद के पीछे पड़ गईं, अब देखेंगे तुम डाक्टर बन कर क्या करोगे। आजकल एम.बी.बी.एस. को कौन पूछता है। किसी सड़ी सी गली में डिस्पेंसरी खोलोगे और सारा दिन बैठे मक्खियां मारा करोगे। पैसे वाले तो बड़ी बड़ी डिग्रियां रखने वाले डाक्टरों के पास जाते हैं।

    अच्छी बात है, उस गली की मक्खियां तो मर जाएँगी। साजिद हंसते तो बात टल जाती। एक साल तक माजिद का ख़त आया। अम्मां बी की आँखों में इंतिज़ार की आंधियां आतीं मगर कोई ख़त उड़ कर आता। वो साजिद से कुछ कहतीं। वो उसे परेशान करना चाहती थीं। आख़िरी इम्तिहान में एक दो महीने रह गए थे।

    आख़िर आंधी थमी। माजिद का ख़त गया। उसने लिखा था कि उसने वहां शादी कर ली है। वहीं की शहरियत इख़्तियार करली है। शादी के वक़्त उसे अम्मां बी बहुत याद आईं। वो बहुत देर तक रोता रहा। फिर एलिस ने उसका सर अपने सीने से लगा कर तसल्ली दी तो क़रार गया। आख़िर में लिखा था कि आपकी बहू आपसे मिलने को बेचैन है।

    अम्मां बी ख़त पढ़ने के बाद देर तक अकेली बैठी काँप काँप कर रोती रहीं। उन्हें एलिस की ज़ात से नफ़रत हो गई।

    शाम को दोनों बेटियां अम्मां बी के पास आईं। दोनों रंजीदा थीं। दोनों एलिस को बुरा-भला कह रही थीं। अम्मां बी ने पहली बार बेटियों पर तंज़ किया।

    उसका मुस्तक़बिल बन गया। अब तुम लोग ख़ुश हो, तुम्हारी ख़्वाहिशें पूरी हो गईं।

    बड़ी बेटी तो उस वक़्त चुप हो गई मगर छोटी बेटी किस तरह चुप रहती, कोई हमने सिखा कर भेजा था कि वहां फीके शलजम से शादी कर लेना, वहीं के हो रहना, आख़िर तो दुनिया इल्म सीखने जाती है। लोग इसी तरह तरक़्क़ी करते हैं। आपको तो बस इल्ज़ाम रखना आता है।

    उस दिन पहली बार साजिद ने अपनी छोटी बजिया को डाँटा, किसी वक़्त तो आप अपनी ज़बान को क़ाबू में भी रखा करें।

    क्यों क़ाबू में रखूं? माजिद यहां होते तो शादी करते। कौन सा अम्मां के पहलू से लगे बैठे रहते। अब तुम करना शादी, हाँ।

    बात कहाँ से कहाँ पहुंच गई। अम्मां बी के दिल पर चोट सी लगी, जब साजिद शादी करेगा तो...तो...?

    रात को जब अम्मां बी की बेटियां अपने अपने घरों को चली गईं तो अम्मां बी चुपके से बक्स रुम में गईं। काँपते हुए हाथों से बड़े बक्स का ताला खोला और माजिद की दुल्हन के लिए जो बरी बनाई थी उसे खोई खोई नज़रों से देखती रहीं। फिर बक्स को बंद कर के जब वो ताला लगाने लगीं तो जैसे सारे जिस्म की ताक़त उनके हाथों में गई। अब ये ताला कभी नहीं खुलेगा। वो ज़ेर-ए-लब बड़बड़ाईं और फिर बड़े सुकून से कर अपने बिस्तर पर बैठ गईं।

    जिस दिन साजिद ने एम.बी.बी.एस. के आख़िरी साल का इम्तिहान दिया तो उस दिन अम्मां बी सारा दिन ख़ुदा से गिड़गिड़ा कर दुआएं करती रहीं कि उनका बेटा अच्छे नंबरों से पास हो। उसे अब कोई वज़ीफ़ा मिले।

    मगर चंद माह बाद नतीजा निकला तो दुआओं के बरअक्स था। सारा ख़ानदान मुबारकबादों से झोलियाँ भरे सारे घर में दनदनाता फिर रहा था।

    मैं तो कहती हूँ अम्मां बी साजिद को सर्जरी की आला तालीम के लिए माजिद के पास भेज दीजिए अब तो वहां अपना घर भी है। एलिस ऐसी बुरी भी नहीं। अगर बुरी होती तो माजिद बहनों को किस तरह पूछ सकता था। अभी उसने बच्चों को रुपये और कपड़े भिजवाए थे। बड़ी बेटी ने नज़रें झुकाए झुकाए अम्मां बी को मश्वरा दिया। उस वक़्त क्लर्क शौहरों की बीवियों की अज़ली मज़लूमियत उनके चेहरे पर बरस रही थी। अगर साजिद भी चला जाता तो दोनों बहनों के हक़ में बहुत अच्छा होता और फिर उन्हें ये भी पता था कि माजिद के मुक़ाबले में साजिद बहनों से ज़्यादा मुहब्बत करता है।

    अम्मां बी, अगर माएं अपने बच्चों के मुस्तक़बिल की फ़िक्र करेंगी तो फिर कौन करेगा? छोटी बेटी ने माँ को गुम-सुम देखकर बड़ी बहन का साथ दिया...अम्मां बी सामने बैठे हुए साजिद की आँखों में अजीब तरह से झांक रही थीं।

    छोटी बजिया, मैं कहीं नहीं जाऊँगा। मैं यहीं किसी गली में डिस्पेंसरी खोलूँगा। मैं यहीं रह कर अपनी बहनों की ज़्यादा ख़िदमत करूँगा। साजिद ने इस तरह कहा कि उस लहजे का तंज़ नुमायां था।

    दोनों बहनें इस तरह बिफर गईं जैसे उनकी चोरी पकड़ी गई हो।

    मत जाओ, हमें क्या, जब तुम्हारी डिस्पेंसरी पर मक्खियां भिनकेंगी तो फिर पूछूँगी, बड़ी बजिया खिसियानी हो रही थीं।

    तुम आगे बढ़ने की सलाहियत ही नहीं रखते। तेईस चौबीस साल के पूरे आदमी हो और नन्हे बच्चों की तरह अम्मां बी की पट्टी से पट्टी जोड़ कर सोते हो, मगर बात इस तरह करते हो जैसे अपनी बहनों के अन्नदाता हो। अरे भय्या तुम तरक़्क़ी करोगे तो हम ख़ुश होंगे और बस।

    छोटी बजिया का चेहरा ग़ुस्से से सुर्ख़ हो रहा था।

    साजिद के कुछ कहने सुनने से पहले ही दोनों बहनें नाराज़ हो कर चली गईं। अम्मां बी ख़ामोश बैठी सब का मुँह तकती रह गईं। वैसे भी अब उनमें इतनी ताक़त कहाँ रह गई थी कि जल्दी से उठकर रूठी हुई बेटियों को मना लेतीं। माजिद की जुदाई, डायन बन कर उन्हें चाट गई थी, इस पर ये फ़िक्र कि अगर साजिद की डिस्पेंसरी चली तो...?

    साजिद मियां की डिस्पेंसरी और उनके हाथ की शिफ़ा ऐसी मशहूर हुई कि जो अज़ीज़ रिश्तेदार छोटे डाक्टरों के पास भी जाते वो भी मुफ़्त ईलाज कराने दौड़ पड़े और अम्मां बी के सीने पर धरी हुई शक की सिल भी आख़िर को सरक गई। फिर भी रात को सोते सोते एक-बार हाथ बढ़ा कर साजिद के सर को छूतीं और फिर इस एहसास के साथ सो जातीं कि वो उनके पास है।

    ख़्वाब-आवर दवाएं खाने के बावजूद कभी कभी उन्हें रात देर से नींद आती। वो सोचतीं कि अब साजिद की शादी कर दें। मगर इस ख़याल ही से वो उलझ कर रह जातीं कि तन्हाई और बुढ़ापा उनसे क्या सुलूक करेगा। साजिद भी माजिद की तरह बदल नहीं जाएगा। ख़ानदान वाले तरह तरह की बातें कर रहे थे। बेटियां उनके मुँह पर कह गई थीं कि अम्मां बी साजिद की शादी नहीं करेंगी। उसे कूल्हे से लगाए लगाए बूढ़ा कर देंगी। उन्होंने बड़ी सफ़ाई से कहा था कि जब साजिद अपने हम उम्रों को चार-चार बच्चों का बाप देखता होगा तो क्या सोचता होगा। ये सब कुछ सुनने के बाद भी वो जैसे बहरी बन जातीं।

    बहुत मुद्दतों के बाद माजिद और एलिस का ख़त आया था। एलिस का ख़त पा कर उन्हें बड़ी हैरत हुई थी। उसने बड़ी साफ़ उर्दू में पहली बार अपनी सास को ख़त लिखा था। माजिद के ख़त में ख़ास बात यही एक थी कि वो अपनी अम्मां बी को बहुत याद करता है। वो बहुत मस्रूफ़ था। इसलिए ख़त लिख सका... और एलिस ने लिखा था;

    अम्मां बी... कल जब माजिद को कामों से फ़ुर्सत मिली तो वो आपको याद कर के बहुत रोया। वो ज़िद कर रहा था कि फ़ौरन अपनी अम्मां बी से मिलने जाएगा। वो उस वक़्त ये भी भूल गया था कि वो जल्द फिर बाप बनने वाला है। फिर मैंने उसे समझाया कि वो लोग जिनका हाल उनकी दस्तरस से बाहर है और मुस्तक़बिल में उनका कोई हिस्सा नहीं और वो लोग जिनका मुस्तक़बिल इंतिज़ार कर रहा है। आख़िर उन्हें एक दूसरे की जुदाई बर्दाश्त करनी पड़ती है और...

    अम्मां बी ने ख़त को लिफ़ाफ़े में बंद कर के अलमारी में रख दिया। सारा ख़त पढ़ने की हिम्मत जवाब दे गई थी। वो देर तक तकिए में मुँह छुपा कर रोती रहीं और चेहरे की झुर्रियों की तहों में लिखी हुई मुस्तक़बिल को जन्म देने वाली माज़ी की दास्तान आँसुओं से ढलती रही।

    रात जब साजिद मियां अम्मां बी के मलमल के सफ़ेद झाग जैसे दुपट्टे को आँखों पर लेटे सोने की कोशिश कर रहे थे तो अम्मां बी ने उनको आहिस्ते से पुकारा,

    साजिद बेटे?

    अरे आप अभी तक सोई नहीं अम्मां बी?

    बेटे...मैं सोच रही थी कि अब तुम्हारी शादी कर दूं।

    शादी? साजिद मियां हैरतकदा बन गए। वो बैठ कर अम्मां बी का मुँह तकने लगे। वो तो शादी का ख़याल ही दिल से निकाल चुके थे। शादी के ख़ूबसूरत तसव्वुर में उन्होंने कितनी रातें गुज़ारी थीं। कितने ख़्वाबों में एक से एक ख़ूबसूरत दुल्हन नथ और टीका चमकाती उनके सीने को रौंदती हुई ग़ायब हो गई थी।

    तुम हैरान क्यों हो रहे हो बेटे? अम्मां बी तकिए की टेक लगा कर बैठ गई।

    अम्मां, में शादी नहीं करूँगा। मैं नहीं चाहता कि आपकी मुहब्बत में कोई और हिस्सेदार बने। उन्होंने बहुत साफ़ आवाज़ में जवाब दिया।

    बेटे वो लोग जिनका दिल उनकी दस्तरस से बाहर होता है और मुस्तक़बिल में उनका कोई हिस्सा हो उनके मुक़ाबले में वो लोग जिनका मुस्तक़बिल उनका इंतिज़ार कर रहा हो। उन्हें आख़िर एक दिन एक दूसरे से जुदाई बर्दाश्त करनी पड़ती है। मेरा क्या आज हूँ कल नहीं हूँ।

    अम्मां बी, ये आज आप कैसी बातें कर रही हैं। साजिद मियां की हैरत इंतिहा को पहुंच गई।

    सो जा पगले, मुझे अब नींद रही है। लेट कर अम्मां बी ने लिहाफ़ सर तक खींच लिया और पलट कर ये भी देखा कि लैम्प का स्विच आफ़ करने के बाद साजिद कब तक एक ही तरह से बैठे रहे।

    छोटी बजिया बंद दरवाज़ों को पीट रही थीं। साजिद ने उठकर दरवाज़ा खोल दिया।

    लड़कियां ज़ोर ज़ोर से गा रही थीं;

    बन्नो तेरे अब्बा की ऊंची हवेली।

    बन्नो मैं ढूंढता चला आया।

    भई हद है। शाम होने वाली है और माँ-बेटे मज़े से सो रहे हैं। अभी तो दुल्हन का कमरा सजाना है। अम्मां बी माजिद का कमरा सजा दूं। सबसे बड़ा और शानदार है। छोटी बजिया कमरा सजाने के ख़याल से ही सुर्ख़ पड़ी हुई थीं।

    नहीं बेटी, साजिद वाला कमरा सजाओ। जब कभी वो तुम लोगों से मिलने आएगा तो अपने कमरे में ठहरेगा।

    उनका क्या पता अम्मां बी, अगर भाबी के साथ आए तो आठ दस दिन को आएँगे। अकेले आए तो आपके कमरे में रहेंगे। छोटी बजिया रंजीदा हो गईं। अल्लाह क़सम वो कमरा सबसे ज़्यादा शानदार है। ऐसा सजेगा ऐसा...

    ठीक है मगर उसका कमरा मत सजाना। वो माजिद का कमरा है। किसी की चीज़ नहीं छीनते बेटी, गुनाह होता है। अम्मां बी की आवाज़ भर्रा गई।

    क्या फ़ुज़ूल बातें हैं छोटी बजिया। जो कुछ अम्मां बी कहें वही कीजिए। अम्मां बी आप ख़याल किया कीजिए, छोटी बजिया तो हमेशा की ज़िद्दी हैं।

    आज तुम कुछ भी कह लो मैं सुन लूँगी। वो हँसती हुई चली गईं।

    मैं अब डिस्पेंसरी जा रहा हूँ अम्मां बी। आप आराम से बैठिएगा। काम करने उठ जाइएगा। जूतों की डोरियां बांध कर वो जल्दी से चले गए।

    अम्मां बी ने ख़ुदा का शुक्र अदा किया कि ज़रा देर पहले की हुई बात उन्होंने फिर नहीं दोहराई। फिर भी वो साजिद के वहशतज़दा चेहरे और कड़े तेवरों से डरी हुई थीं।

    ढोल पर बैठी हुई लड़कियां चाय पीने के बाद चलते फिरते गा रही थीं।

    लट्ठे दी चादर इत्ते सलेटी रंग माहिया

    आजा सामने, बह जा सामने, कोलों दी रस के लंग माहिया।

    जब अम्मां बी दुल्हन को रुख़्सत करा के लाईं तो वो ख़ुशी से फूली समा रही थीं, मगर आरसी मुस्हफ़ और मुँह दिखाई की रस्म के बाद जब दुल्हन को उसके कमरे में ले गए तो उनके दिल पर एक दम सन्नाटे ने जैसे यलग़ार कर दी। अब साजिद भी चला जाएगा। आज उन्होंने उसे खो दिया। कोई जज़्बा उनका दिल नोचे ले रहा था। उधर सारे दिन की थकन उन्हें आँखें खोलने दे रही थी।

    साजिद की नज़रें मुसलसल अम्मां बी का पीछा कर रही थीं, वो अपने बिस्तर पर पांव लटकाए बैठे थे और जब रिश्ते की भावजें इन्हें लेने आईं तो वो बेहद परेशान हो गए। मैं अभी नहीं जाऊँगा, अम्मां बी बहुत थक गई हैं। उन्होंने अम्मां बी को सहारा देकर आराम से लिटा दिया। फिर अलमारी से नींद की दवा निकाली और दो गोलियां खिलाईं। फिर उनके पांवती बैठ कर सूजे हुए पैरों को आहिस्ता-आहिस्ता मलने लगे।

    बड़ी बजिया आज यहां अम्मां बी के पास मेरे बिस्तर पर आप लेट जाइए। उन्होंने बड़ी उम्मीद से बड़ी बजिया को देखा।

    मैं यहां आराम से छप्पर खट पर लेट जाऊं तो मेरी सहेलियाँ बुरा नहीं मानेंगी। वो सब बेचारियाँ क़ालीनों पर लुढ़कती रहें। बड़ी बजिया ने समझाने के अंदाज़ से कहा।

    तो फिर आप छोटी बजिया। वो घिघिया रहे थे।

    अल्लाह, साजिद तुमने तो मेरी अम्मां बी को दूध पीता बच्चा बना दिया है। अम्मां बी तो आज अपने फ़र्ज़ से सुबुकदोश हो कर आराम से सोएँगी।

    सारी भावजों ने क़हक़हे लगाते हुए साजिद को पकड़ कर खींचना शुरू कर दिया और वो थे कि अम्मां बी को बेबसी से देखे जा रहे थे।

    अरे जाते क्यों नहीं बेटे। मैं तो सो रही हूँ, मेरी तो थकन से आँख भी नहीं खुल रही।

    अभी नहीं जाऊँगा। मैं चला जाऊँगा। उन्होंने भावजों से ख़ुद को छुड़ा कर फिर अम्मां के पांव पकड़े और आहिस्ता-आहिस्ता दबाने लगे।

    भावजें कुछ नाराज़ सी हो कर चुपचाप खड़ी हो गईं। अम्मां बी सचमुच ज़रा देर में ख़र्राटे लेने लगीं।

    रात को ढाई बजे के क़रीब वो कुछ सोती कुछ जागी सी थीं कि उन्होंने आदत के मुताबिक़ हाथ बढ़ा कर साजिद के ऊपर रख दिया। फिर एक दम हड़बड़ा कर उठ गईं। पांव दबाते दबाते ये पगला यहीं सो गया उन्होंने जल्दी से टटोल कर लैम्प का स्विच आन किया-क्या कहेंगे सब, यहां सो गया है। उन्होंने सारे का सारा लिहाफ़ खींच लिया। गाव तकिए पर उसी तरह लिहाफ़ पड़ा था कि अम्मां बी को एक दम हंसी गई। उसने सोचा होगा कि अम्मां बी रात को एक बार उस पर हाथ रखती हैं। वो हाथ रखेंगी और फिर सो जाएँगी। रात जाने किस वक़्त कर ये कार्रवाई कर गया है।

    सोचते सोचते वो बराबर मुस्कुरा रही थीं। उन्होंने सिरहाने से गिलास उठा कर पानी पिया, फिर गाव तकिए को चूम कर उसी तरह लिहाफ़ डाल दिया। लैम्प बुझाया और फिर लेट गईं। माजिद तो अपने मुस्तक़बिल की ख़ुशी में माज़ी के सिरहाने तकिया रखना भी भूल गया था, उनकी आँखों में आँसू गए। जिन्हें जल्दी से दुपट्टे के आँचल से पोंछ लिया और करवट लेकर बड़े प्यार से गाव तकिया पर हाथ रखकर चंद मिनट उसे टटोलती रहीं और फिर आराम से सो गईं...

    स्रोत:

    Thanda Meetha Pani (Pg. 96)

    • लेखक: ख़दीजा मस्तूर
      • प्रकाशक: ख़ालिद अहमद
      • प्रकाशन वर्ष: 1981

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