aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्ताँ वालो
तुम्हारी दास्ताँ तक भी न होगी दास्तानों में
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़
अहल-ए-नज़र समझते हैं उस को इमाम-ए-हिंद
चीन ओ अरब हमारा हिन्दोस्ताँ हमारा
रहने को घर नहीं है सारा जहाँ हमारा
काबे को जाता किस लिए हिन्दोस्ताँ से मैं
किस बुत में शहर-ए-हिन्द के शान-ए-ख़ुदा न थी
जो ये हिन्दोस्ताँ नहीं होता
तो ये उर्दू ज़बाँ नहीं होती
कोई करता है जब हिन्दोस्तान की बात ए 'साहिल'
मुझे इक़बाल का क़ौमी तराना याद आता है
ज़लज़ला नेपाल में आया कि हिन्दोस्तान में
ज़लज़ले के नाम से थर्रा उठा सारा जहाँ
हिन्दोस्ताँ में दौलत ओ हशमत जो कुछ कि थी
काफ़िर फ़िरंगियों ने ब-तदबीर खींच ली
हिन्दोस्ताँ में धूम है किस की ज़बान की
वो कौन है 'रियाज़' को जो जानता नहीं
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