अज़ीज़ लखनवी के 10 बेहतरीन शेर
लखनऊ में क्लासिकी ग़ज़ल के प्रमुख उस्ताद शायर
अपने मरकज़ की तरफ़ माइल-ए-परवाज़ था हुस्न
भूलता ही नहीं आलम तिरी अंगड़ाई का
पैदा वो बात कर कि तुझे रोएँ दूसरे
रोना ख़ुद अपने हाल पे ये ज़ार ज़ार क्या
ज़बान दिल की हक़ीक़त को क्या बयाँ करती
किसी का हाल किसी से कहा नहीं जाता
लुत्फ़-ए-बहार कुछ नहीं गो है वही बहार
दिल ही उजड़ गया कि ज़माना उजड़ गया
वही हिकायत-ए-दिल थी वही शिकायत-ए-दिल
थी एक बात जहाँ से भी इब्तिदा करते
दिल की आलूदगी-ए-ज़ख़्म बढ़ी जाती है
साँस लेता हूँ तो अब ख़ून की बू आती है