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जुरअत क़लंदर बख़्श के 10 बेहतरीन शेर

अपनी शायरी में महबूब के साथ मामला-बंदी के मज़मून के लिए मशहूर, नौजवानी में नेत्रहीन हो गए

इलाही क्या इलाक़ा है वो जब लेता है अंगड़ाई

मिरे सीने में सब ज़ख़्मों के टाँके टूट जाते हैं

जुरअत क़लंदर बख़्श

मिल गए थे एक बार उस के जो मेरे लब से लब

उम्र भर होंटों पे अपने मैं ज़बाँ फेरा किए

जुरअत क़लंदर बख़्श

उस ज़ुल्फ़ पे फबती शब-ए-दीजूर की सूझी

अंधे को अँधेरे में बड़ी दूर की सूझी

जुरअत क़लंदर बख़्श

दिल-ए-वहशी को ख़्वाहिश है तुम्हारे दर पे आने की

दिवाना है व-लेकिन बात करता है ठिकाने की

जुरअत क़लंदर बख़्श

ग़म मुझे ना-तवान रखता है

इश्क़ भी इक निशान रखता है

जुरअत क़लंदर बख़्श

उस शख़्स ने कल हातों ही हातों में फ़लक पर

सौ बार चढ़ाया मुझे सौ बार उतारा

जुरअत क़लंदर बख़्श

क्या क्या किया है कूचा-ब-कूचा मुझे ख़राब

ख़ाना ख़राब हो दिल-ए-ख़ाना-ख़राब का

जुरअत क़लंदर बख़्श

ख़ूबान-ए-जहाँ की है तिरे हुस्न से ख़ूबी

तू ख़ूब होता तो कोई ख़ूब होता

जुरअत क़लंदर बख़्श

कहिए क्यूँकर उसे बादशह-ए-किश्वर-ए-हुस्न

कि जहाँ जा के वो बैठा वहीं दरबार लगा

जुरअत क़लंदर बख़्श

खाए सो पछताए और पछताए वो भी जो खाए

ये ग़म-ए-इश्क़-ए-बुताँ लड्डू है गोया बोर का

जुरअत क़लंदर बख़्श

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