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उर्दू शायरी में दीपावली: रौशनी के हज़ार रंग

दीपावली भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे भव्य त्योहार है। धार्मिक महत्व के अलावा यह त्योहार हमारे आंतरिक गुणों का सांस्कृतिक उत्सव भी है। रोशनी के इस त्योहार को इन चुनिंदा अशआर के साथ मनाएं।

है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़

अहल-ए-नज़र समझते हैं उस को इमाम-ए-हिंद

अल्लामा इक़बाल

रात को जीत तो पाता नहीं लेकिन ये चराग़

कम से कम रात का नुक़सान बहुत करता है

इरफ़ान सिद्दीक़ी

आप आए तो बहारों ने लुटाई ख़ुश्बू

फूल तो फूल थे काँटों से भी आई ख़ुश्बू

अज्ञात

शहर के अंधेरे को इक चराग़ काफ़ी है

सौ चराग़ जलते हैं इक चराग़ जलने से

एहतिशाम अख्तर

सभी के दीप सुंदर हैं हमारे क्या तुम्हारे क्या

उजाला हर तरफ़ है इस किनारे उस किनारे क्या

हफ़ीज़ बनारसी

देखूँ तिरे हाथों को तो लगता है तिरे हाथ

मंदिर में फ़क़त दीप जलाने के लिए हैं

जाँ निसार अख़्तर

रौशनी आधी इधर आधी उधर

इक दिया रक्खा है दीवारों के बीच

उबैदुल्लाह अलीम

राहों में जान घर में चराग़ों से शान है

दीपावली से आज ज़मीन आसमान है

ओबैद आज़म आज़मी

जाएगी गुलशन तलक उस गुल की आमद की ख़बर

आएगी बुलबुल मिरे घर में मुबारकबाद को

सख़ी लख़नवी

खिड़कियों से झाँकती है रौशनी

बत्तियाँ जलती हैं घर घर रात में

मोहम्मद अल्वी

ज़रा से रिज़्क़ में बरकत भी कितनी होती थी

और इक चराग़ से कितने चराग़ जलते थे

अतीक़ुल्लाह

बीस बरस से इक तारे पर मन की जोत जगाता हूँ

दीवाली की रात को तू भी कोई दिया जलाया कर

माजिद-अल-बाक़री

दिलों को तेरे तबस्सुम की याद यूँ आई

कि जगमगा उठें जिस तरह मंदिरों में चराग़

फ़िराक़ गोरखपुरी

ये भी एजाज़ मुझे इश्क़ ने बख़्शा था कभी

उस की आवाज़ से मैं दीप जला सकता था

अहमद ख़याल

शामिल हुए हैं बज़्म में मिस्ल-ए-चराग़ हम

अब सुब्ह तक जलेंगे लगातार देखना

हनीफ़ अख़गर

समेट लें मह ख़ुर्शीद रौशनी अपनी

सलाहियत है ज़मीं में भी जगमगाने की

मज़हर इमाम

इक दिया दिल की रौशनी का सफ़ीर

हो मयस्सर तो रात भी दिन है

इदरीस बाबर

आओ तो मेरे सहन में हो जाए रौशनी

मुद्दत गुज़र गई है चराग़ाँ किए हुए

अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन

मैं रौशनी पे ज़िंदगी का नाम लिख के गया

उसे मिटा मिटा के ये सियाह रात थक गई

नसीम अंसारी

हर तरफ़ फैली हुई थी रौशनी ही रौशनी

वो बहारें थीं कि अब के बाग़ में रस्ता था

शहज़ाद अहमद
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