एक अनोखे दिन में वारदात-ए-क़त्ल
रोचक तथ्य
شہید فلسطینی طالبہ منتہا کے لیے
जिस घड़ी वो चला
तौसन-ए-वक़्त की पीठ पर बैठ कर
तेग़ एक हाथ में
दूसरे हाथ में ले के
जिस घड़ी इस वतन के दर-ओ-बाम में
कुंज-ए-ज़िंदाँ की हसरत भरी शाम में
वो हवाएँ चलीं
जिन में शामिल थे इम्कान के नामा-बर
उस घड़ी मुंतही
अपनी ख़ुशियों के चाँदों से झोली भरे
सू-ए-दश्त-ए-फ़लक अपने घर से चली
ये बताने कि अब ज़िंदगी के हर इक कोहना अंदाज़ की हो चुकी इंतिहा
ये बताने कि अब हो रही है नए दौर की इब्तिदा
उस के कमरे में उस की थकी माँदी माँ
बे-ख़याली की फैली हुई धुंद के दरमियाँ
उस की दर्सी किताबों के औराक़ से खेलते खेलते
ख़ुद-कलामी में थी
मेरी नूर-ए-नज़र
दुश्मनों की निगाहें बहुत तेज़ हैं
उन से करना हज़र
उस का ये वसवसा बे-हक़ीक़त न था
वाक़'ई इस घड़ी ख़ंजर-ए-बद-गुहर
उस की नूर-ए-नज़र के त'आक़ुब में था
उस के हुल्क़ूम पर थी 'अदू की नज़र
सुब्ह-दम जिस घड़ी
उस के लाशे के चेहरे से चादर हटी
तो गुलाबों की महकार वहशी हुई
और चादर तले सुर्ख़ फूलों के दस्ते हुवैदा हुए
और दर्सी किताबों के औराक़ में
जुरअत-ओ-आगही के वो सारे सबक़
जो कि महज़ूफ़ थे फिर नुमायाँ हुए
बे-हुनर और सादा वरक़ की जबीं
इन हदों की लकीरों से रौशन हुई
जिन का नक़्शा 'अदू के सियह हाथ से
पारा पारा हुआ
उस की चादर स्कूलों में पलती हुई
नौजवाँ आरज़ूओं का परचम बनी
जो खुला और फिर
अज़-नज़र ता-नज़र फैलता ही गया
साहिली बस्तियों के फ़राज़ों पे छाता हुआ
तुंद-ख़ू शाह-राहों पे बोझल दरख़्तों पे साया बना
खिड़कियों में घरों की छतों पर
दुकानों के शेल्फ़ों पे ज़ाहिर हुआ
और यूँ मुंतही देखते देखते
ऊँचे साहिल पे बिखरी हुई बस्तियों के दर-ओ-बाम पर
आसमाँ की तरह ख़ेमा-ज़न हो गई
मुंतहा लाश है पर उसे क़त्ल किस ने किया कब किया
कौन है जो कहे मैं ने मारा उसे
उसे कौन मस्लूब करता कि जो
सू-ए-दश्त-ए-फ़लक
घर से नक़्श-ए-फ़ना ले के रुख़्सत हुई
अपनी ख़ुशियों के चाँदों से झोली भरे
ये बताने कि अब ज़िंदगी के हर इक कोहना अंदाज़ की
हो चुकी इंतिहा
ये बताने कि अब हो रही है नए दौर की इब्तिदा
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