- पुस्तक सूची 181733
-
-
पुस्तकें विषयानुसार
-
बाल-साहित्य1653
औषधि565 आंदोलन257 नॉवेल / उपन्यास3434 -
पुस्तकें विषयानुसार
- बैत-बाज़ी9
- अनुक्रमणिका / सूची5
- अशआर62
- दीवान1333
- दोहा61
- महा-काव्य92
- व्याख्या149
- गीत86
- ग़ज़ल750
- हाइकु11
- हम्द32
- हास्य-व्यंग38
- संकलन1387
- कह-मुकरनी7
- कुल्लियात635
- माहिया16
- काव्य संग्रह4001
- मर्सिया332
- मसनवी680
- मुसद्दस44
- नात425
- नज़्म1009
- अन्य46
- पहेली14
- क़सीदा143
- क़व्वाली9
- क़ित'अ51
- रुबाई256
- मुख़म्मस18
- रेख़्ती17
- शेष-रचनाएं27
- सलाम28
- सेहरा8
- शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा13
- तारीख-गोई19
- अनुवाद80
- वासोख़्त24
अली अब्बास हुसैनी की कहानियाँ
मेला घुमनी
यह दो भाइयों चुन्नू मुन्नू की कहानी है। चुन्नू बड़ा और फ़रमाँबरदार था। इसलिए जहाँ कहा शादी कर ली, लेकिन मुन्नू आवारा था। जहाँ-तहाँ घूमता रहता। गाँव का एक दर्ज़ी मेले से एक बंजरान को अपने साथ ले आया था। वह पहले दर्ज़ी के यहाँ रही और फिर मीर साहब के यहाँ आ गई। मेरे साहब ने उसकी शादी मुन्नू से कर दी। कुछ दिन बाद बंजारन ने चुन्नू से शादी कर ली और फिर गाँव के एक नौजवान के साथ भाग गई।
गाँव की लाज
यह एक ख़ूबसूरत सामाजिक कहानी है। लखनपुर में उमराव सिंह और दिलदार खाँ दोनों के बीच छत्तीस का आँकड़ा है। एक दूसरे को नीचे दिखाने का दोनों कोई मौका नहीं गँवाना चाहते। दिलदार खाँ की बेटी की शादी है, लेकिन बात मेहर की रक़म को लेकर अटक जाती है। उमराव सिंह को जब पता चलता है तो वह यह कहता हुआ कि बेटी चाहे किसी की भी हो, पूरे गाँव की लाज होती है। वह सीधा खाँ साहब के यहाँ जाता है और समधी से बात कर निकाह की रस्म पूरी कराता है।
कफ़न
हमीद और नसीर अपने मरहूम बाप से बहुत मोहब्बत करते थे। कफ़न-दफ़न की तैयारी के दौरान यह बात सामने आई कि उन्हें किस कपड़े का कफ़न दिया जाए। गाढ़े के कफ़न उनकी शान के ख़िलाफ़ होगा और लट्ठा तो शहर में ही मिलेगा। बरसात का मौसम है और शाम का वक़्त है और कपड़े पर कंट्रोल भी चल रहा है। इसके बावजूद नसीर शहर जाता है और हाकिमों के दरबार की ख़ाक छानता हुआ ब्लैक में लट्ठे का कपड़ा ले आता है। जब तक वह कपड़ा लेकर आता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
बदला
यह एक मुंशी की कहानी है जो सरकारी काम से जौनपुर का सफ़र कर रहे थे। रास्ते में उन्हें एक अंग्रेज़ औरत मिली, जिसका शौहर उसे सज़ा देने के लिए सारा सामान साथ लेकर अकेला ही सफ़र पर निकल गया था। इस बात से नाराज़ होकर वह औरत भी सफ़र में मिले मुंशी के साथ जौनपुर चली गई और वहाँ उनके साथ कई रात रही। वापस जाते हुए उसने बताया कि यह अपने शौहर से उसका इन्तिक़ाम था।
नूर-ओ-नार
अच्छे-बुरे की प्रतिस्पर्धा और आतंरिक परिवर्तन इस कहानी का विषय है। मौलाना इजतबा अपने दारोग़ा दामाद का जनाज़ा पढ़ाने से सिर्फ़ इसलिए मना कर देते हैं कि वो शराबी, बलात्कारी था और उनकी बेटी ज़किया के ज़ेवर तक बेच खाए थे। उसी ग़ुस्से की हालत में इत्तिफ़ाक़ से उनके हाथ ज़किया की डायरी लग जाती है, जिसमें उसने बहुत सादगी से अपने शौहर से ताल्लुक़ात के नौईयत को बयान किया था और हर मौक़े पर शौहर की तरफ़दारी और हिमायत की थी। उसमें उसके ज़ेवर चुराने के वाक़ीआ का भी ज़िक्र था जिसके बाद से अज़हर एक दम से बदल गया था। माफ़ी तलाफ़ी के बाद वो हर वक़्त ज़किया का ख़्याल रखता, तपेदिक़ की वजह से ज़किया चाहती थी कि वो उसके क़रीब न आए लेकिन अज़हर नहीं मानता था। मौलाना ये पढ़ कर डायरी बंद कर देते हैं और जा कर नमाज़ जनाज़ा पढ़ा देते हैं।
आम का फल
निचले तबक़े की नफ़्सियात को इस कहानी में बयान किया गया है। बदलिया चमारिन जाति की है जो शादी के तीन माह बाद ही विधवा हो गई है। उसकी सास और ननदें बजाय इसके कि उसे सांत्वना देतीं उसको डायन वग़ैरा कह कर घर से निकाल कर बैलों के बाड़े में रहने के लिए मजबूर कर देती हैं। छोटे से गाँव में इस घटना की ख़बर हर शख़्स को हो जाती है, इसीलिए हर नौजवान बदलिया के लिए हमदर्दी के जज़्बात से लबरेज़ नज़र आता है और रात के अँधेरे में उसके खाने के लिए छोटी मोटी चीज़ें दे जाता है। उसी सिलसिले में गाँव का बदमाश चन्दी, जो एक दिन पहले ही एक साल की जेल काट कर आया है, वो ठाकुर के बाग़ से आम चुरा कर बदलिया के लिए ले जाता है। बदलिया उसे देखकर डर से चीख़ पड़ती है। उसकी ननदें और सास उस पर बदकिरदारी का इल्ज़ाम लगाती हैं और मारना पीटना शुरू करती हैं। वो घबरा कर भागती है तो उसे रास्ते में चन्दी मिल जाता है और वो समझा बुझा कर उसे अपनी बीवी बनने पर राज़ी कर लेता है। जब वो चमर टोली से गुज़रता है तो जैसे सबको साँप सूंघ जाता है और कोई भी चन्दी का रास्ता रोकने की हिम्मत नहीं करता।
पहरेदार
एक ऐसे शख़्स की कहानी है जिसकी बीवी स्कूल में पढ़ाती है और वह घर के सभी काम संभालता है। हर वक़्त घर में रहने की वजह से उसका नाम पहरेदार पड़ गया है। एक दिन अख़बार में कोई कहानी पढ़कर उसने भी एक कहानी लिखी और अख़बार में प्रकाशन के लिए भेज दिया। उसकी कहानियाँ छपने लगीं और इसके साथ ही उसकी ज़िंदगी भी बदलती चली गई।
बैलों की जोड़ी
यह तीन ऐसे दोस्तों की कहानी है जो राम जी सेठ से बैलों की जोड़ी हथियाने का मंसूबा बनाते हैं। दरअस्ल सेठ जी को पशुओं को पीटे जाने से बहुत तकलीफ़ होती है। पशुओं को मारे जाने से दुखी होकर उन्होंने गाँव की एक पंचायत में कहा था कि जो भी अपने पशुओं के साथ अच्छा सुलूक करेगा उसे वह इनाम के रूप में दो बैलों की जोड़ी देंगे।
पवित्र सिन्दूर
यह कहानी आज़ादी से पहले देश में किसानों की दुर्दशा की दास्तान बयान करती है। ज़मीन पर खेती करने को लेकर 1942 में रामू का ज़मींदार से झगड़ा हो गया था और उस झगड़े ने एक आंदोलन का रूप धार लिया था। उस आंदोलन में उसने अपने जवान बेटे को खो दिया था। आखिरकार आज़ादी की सुबह आई और रामू को उसकी ज़मीन वापस मिल गई।
नई हमसाई
एक मौलवी ख़ानदान के पड़ोस में एक तवाएफ़ आकर रहने लगती है। मौलवी का परिवार उस नए पड़ोसी से दूरी बनाए रखता है। इत्तेफ़ाक़ से मौलवी को किसी ज़रूरी काम से कहीं बाहर जाना पड़ा था, जबकि उनका बच्चा सख़्त बीमार था। इस बीच बच्चे की तबियत बहुत ख़राब हो गई। ऐसी हालत में नए पड़ोसियों ने मौलवी के घर वालों की जिस तरह मदद की वह तो प्रशंसनीय थी ही मौलवी के व्यवहार और चरित्र का आईना भी था।
लाठी पूजा
यह एक ऐसी बेवा की कहानी है जो ज़िंदगी की मुसीबतों से तन्हा जूझ रही होती है। उसका पति एक मशूहर लठैत था, जिसका एक रोज़ धोखे से किसी ने क़त्ल कर दिया था। उस क़त्ल का इल्ज़ाम उसके ही एक क़रीबी छेदा पर लगाया गया था। छेदा एक दिन उस बेवा से मिलने आया और उसने न सिर्फ़ उसके शौहर के क़ातिलों को पकड़ा साथ ही उस बेवा की सारी घरेलू ज़िम्मेदारी भी अपने सर ले ली।
ख़ुश क़िस्मत लड़का
ग़रीबी इंसान को कितना मजबूर-बेबस कर देती है और ज़िंदगी का दृष्टिकोण कितना सीमित हो जाता है, यह इस कहानी में बयान किया गया है। रहीमन एक बुढ़िया है जिसका नौ साल का पोता हमीद है जो अनाथ है। रहीमन हमीद को लेकर गाँव से शहर की तरफ़ चलती है और रास्ते में मिलने वाले हर शख़्स से बताती है कि उसको नौकरी मिल गई है। रहीमन रास्ते भर हमीद को मालिक- नौकर के अधिकार बताने के साथ साथ ये भी कहती है कि तू बड़ा ख़ुश-क़िस्मत है कि नौ साल की उम्र में तुझे नौकरी मिल रही है। शहर पहुँच कर वो हमीद को एक अंधे फ़क़ीर के हवाले कर देती है जिसे भीख मांगने के लिए एक बच्चे की ज़रूरत होती है और फिर आसमान की तरफ़ देखकर कहती है, तेरा शुक्र है मरे मालिक! तू ने मरे बच्चे को इतना ख़ुश-क़िस्मत बनाया कि वो नौवीं ही बरस में काम पर लग गया।
एक माँ के दो बच्चे
इस कहानी में सामाजिक सौहार्द को बयान किया गया है। शेख़ सईद कलकत्ता में परदेसी हैं, सांप्रदायिक दंगों की आग भड़क रही है। वो नवजात नवासे के लिए दूध लेकर लौट रहे होते हैं कि उन्हें एक हिंदू जसवंत राय क़त्ल करने की नीयत से अग़वा कर लेता है। जसवंत के जवान बेटे को मुसलमानों ने क़त्ल कर दिया था, लेकिन जब शेख़ सईद उसे बताते हैं कि उनका जवान बेटा और बेटी इसी जुनून की नज़र हो गए हैं और उनका तीन दिन का नवासा भूख से होटल में तड़प रहा है तो जसवंत के अंदर एक दम तब्दीली पैदा होती है और वो मेरा भाई मेरा भाई कह कर शेख़ सईद से लिपट जाता है और वो फिर उनको अपने घर लाता है और शेख़ सईद के नवासे को अपनी बेवा बहू की गोद में दे देता है कि ये तेरा दूसरा बचा है, जिसके दो बच्चे हों उसको शौहर का ग़म क्यों हो?
मैख़ाना
यह एक व्यापारी की उसके बेटे के साथ होने वाली गुफ़्तुगू है जिसे लेखक ने एक ख़ूबसूरत कहानी का रूप दिया है। बाप बेटे को व्यापार के ढंग बताता है। वह बेटे के कमाए हुए तीन गुना मुनाफे़ पर नाक-भौं चढ़ाते हुए कहता है कि इससे बेहतर तो उसने सड़े हुए अनाज को ग़रीबों में बाँट कर छः गुना मुनाफ़ा कमाया है।
बिट्टी
"इस कहानी में औरत के स्वाभाविक लाज और पूरब मूल्यों को बयान किया गया है। बिट्टी एक अंग्रेज़ नौजवान लड़की है जो अपनी दोस्त के जन्मदिन में लारी से इलाहाबाद जा रही है। अंग्रेज़ होने के बावजूद वो बहुत ही झेंपू क़िस्म की लड़की है। वो जिस डिब्बे में बैठी होती है उसी में एक हिन्दुस्तानी जोड़ा सवार होता है जो हाव भाव से पढ़ा लिखा मालूम होता है लेकिन बिट्टी के अंदर हाकिमीयत का ख़ून जोश मारता है और वो उन्हें हक़ारत से देखती है। इसी बीच एक एंग्लो इंडियन फ़ौजी उसके पास आकर बैठता है और बे-तकल्लुफ़ होने की कोशिश करता है। फिर वो सिगरेट निकालता है तो हिन्दुस्तानी नौजवान उसे मना करता है और तब उन्हें मालूम होता है कि डिब्बा रिज़र्व है लेकिन अगर वो सिगरेट न पिए तो दोनों मियाँ-बीवी बैठ सकते हैं। मियाँ-बीवी का शब्द सुनकर बटी के हवास गुम हो जाते हैं लेकिन वो इस झूठ का इसलिए खंडन नहीं करती कि फिर उसे डिब्बा छोड़ कर काले हिन्दुस्तनियों के साथ बैठना पड़ेगा। नवजवान को शह मिल जाती है और फिर वो और ज़्यादा बे-तकल्लुफ़ हो जाता है। बिट्टी को उसकी बातचीत से मालूम होता है कि वो नौजवान अनाथ है और उसके दोस्त, उस्ताद के अलावा इस दुनिया में कोई नहीं है। इलाहाबाद पहुँच कर बटी ख़ुश हो जाती है और वो ऐंग्लो इंडियन लड़के के साथ उसके होटल चली जाती है।"
join rekhta family!
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
GET YOUR PASS
-
बाल-साहित्य1653
-