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बेकल उत्साही

1930 - 2016 | बलरामपुर, भारत

प्रमुख लोकप्रिय शायर जिन्हें ‘उत्साही’ का उपनाम जवाहर लाल नेहरू ने दिया था/उर्दू शायरी को हिंदी के क़रीब लाने के लिए विख्यात

प्रमुख लोकप्रिय शायर जिन्हें ‘उत्साही’ का उपनाम जवाहर लाल नेहरू ने दिया था/उर्दू शायरी को हिंदी के क़रीब लाने के लिए विख्यात

बेकल उत्साही

ग़ज़ल 19

नज़्म 7

अशआर 22

बीच सड़क इक लाश पड़ी थी और ये लिक्खा था

भूक में ज़हरीली रोटी भी मीठी लगती है

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वो थे जवाब के साहिल पे मुंतज़िर लेकिन

समय की नाव में मेरा सवाल डूब गया

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उलझ रहे हैं बहुत लोग मेरी शोहरत से

किसी को यूँ तो कोई मुझ से इख़्तिलाफ़ था

अज़्म-ए-मोहकम हो तो होती हैं बलाएँ पसपा

कितने तूफ़ान पलट देता है साहिल तन्हा

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उस का जवाब एक ही लम्हे में ख़त्म था

फिर भी मिरे सवाल का हक़ देर तक रहा

दोहा 6

तुम बिन चाँद देख सका टूट गई उम्मीद

बिन दर्पन बिन नैन के कैसे मनाएँ ईद

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अमृत रस की बीन पर ज़हर के नग़्मे गाओ

मरहम से मुस्कान के ज़ख़्मों को उकसाओ

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पैसे की बौछार में लोग रहे हमदर्द

बीत गई बरसात जब मौसम हो गया सर्द

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ट्रेन चली तो चल पड़े खेतों के सब झाड़

भाग रहे हैं साथ ही जंगल और पहाड़

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नश्तर चाहे फूल से बर्फ़ से माँगे ख़ून

धूप खिलाए चाँद को अंधे का क़ानून

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गीत 1

 

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