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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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फ़रहत परवीन

अशआर 5

दो-जहाँ पाने का राज़ बताऊँ तुझ को

जा किसी प्यार-भरे दिल में ठिकाना कर ले

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क्यों भेद खुले लाचारी का एहसान भी लें दिलदारी का

आँखों को नहीं हम करते नम पर दिल में समुंदर रखते हैं

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जैसा कल था आज भी वैसा और वैसा ही हो गा

आज का कर्ब उठाने में मैं कल का दुख भी सहती हूँ

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यूँ दिया करते हैं हम तल्ख़-नवाई का जवाब

अपने लहजे में ज़रा और भी रस घोलते हैं

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यूँ दिया करते हैं हम तल्ख़-नवाई का जवाब

अपने लहजे में ज़रा और भी रस घोलते हैं

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ग़ज़ल 1

 

नज़्म 3

 

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