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पुस्तकें विषयानुसार
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बाल-साहित्य1073
आंदोलन64 नॉवेल / उपन्यास1919 राजनीतिक20 शोध एवं समीक्षा3726 कहानी 21
शेर 13
हर एक रात कहीं दूर भाग जाता हूँ
हर एक सुब्ह कोई मुझ को खींच लाता है
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बच के दुनिया से घर चले आए
घर से बचने मगर किधर जाएँ
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मैं उस के झूट को भी सच समझ के सुनता हूँ
कि उस के झूट में भी ज़िंदगी की क़ुव्वत है
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मैं ऐसा नर्म तबीअत कभी न था पहले
ज़रूर लम्स कोई उस का छू गया मुझ को
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दफ़्तर में ज़ेहन घर निगह रास्ते में पाँव
जीने की काविशों में बदन हाथ से गया
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ग़ज़ल 14
पुस्तकें 32
चित्र शायरी 1
अपनी नज़र में भी तो वो अपना नहीं रहा चेहरे पे आदमी के है चेहरा चढ़ा हुआ मंज़र था आँख भी थी तमन्ना-ए-दीद भी लेकिन किसी ने दीद पे पहरा बिठा दिया ऐसा करें कि सारा समुंदर उछल पड़े कब तक यूँ सत्ह-ए-आब पे देखेंगे बुलबुला बरसों से इक मकान में रहते हैं साथ साथ लेकिन हमारे बीच ज़मानों का फ़ासला मजमा' था डुगडुगी थी मदारी भी था मगर हैरत है फिर भी कोई तमाशा नहीं हुआ आँखें बुझी बुझी सी हैं बाज़ू थके थके ऐसे में कोई तीर चलाने का फ़ाएदा वो बे-कसी कि आँख खुली थी मिरी मगर ज़ौक़-ए-नज़र पे जब्र ने पहरा बिठा दिया
वीडियो 8
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बाल-साहित्य1073
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