हाजी लक़ लक़ के शेर
नाम के साथ एक दो अल्फ़ाज़ की दुम चाहिए
शेर फीका ही सही लेकिन तरन्नुम चाहिए
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सामने अग़्यार के बे-पर्दा और मुझ से हिजाब
गुलगुलों से है उसे परहेज़ और गुड़ खाए है
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बन के लीडर सो रहे तो ज़िंदगी किस काम की
अम्न क़ाएम हो गया तो लीडरी किस काम की
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झड़ती हैं उन के मुँह से जो मंज़ूम गालियाँ
सुन सुन के वाह वाह किए जा रहा हूँ मैं
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अब भी वो कह रहे हैं कि मेरे बुज़ुर्ग हो
कुछ भी हुआ न शेव कराने से फ़ाएदा
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तू वो गुल है कि जिस में बू ही नहीं
तू तो गोभी का फूल है प्यारे
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किसे दास्तान-ए-मसारिफ़ सुनाऊँ
मैं इस डेढ़ आने में क्या क्या बनाऊँ
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नक़्श-ए-पा-ए-यार को चूमूँ तो चूमूँ किस तरह
हो बुरा पतलून का मुझ से न बैठा जाए है
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