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प्रेमचंद

1880 - 1936 | बनारस, भारत

उर्दू हिंदी के पहले सशक्त फ़िक्शन-निगार, जिन्होंने उपन्यास और कहानी के माध्यम से समाजी सरोकारों को कलात्मक अभिव्यक्ति दी। उपन्यास-सम्राट के रूप में सर्वविदित।

उर्दू हिंदी के पहले सशक्त फ़िक्शन-निगार, जिन्होंने उपन्यास और कहानी के माध्यम से समाजी सरोकारों को कलात्मक अभिव्यक्ति दी। उपन्यास-सम्राट के रूप में सर्वविदित।

प्रेमचंद के उद्धरण

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दौलत से आदमी को जो इज़्ज़त मिलती है वह उसकी नहीं, उसकी दौलत की इज़्ज़त होती है।

मैं एक मज़दूर हूँ, जिस दिन कुछ लिख लूँ उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक़ नहीं।

सोने और खाने का नाम ज़िंदगी नहीं है। आगे बढ़ते रहने की लगन का नाम ज़िंदगी है।

मायूसी मुम्किन को भी ना-मुम्किन बना देती है।

शायरी का आला-तरीन फ़र्ज़ इन्सान को बेहतर बनाना है।

माज़ी चाहे जैसा हो उसकी याद हमेशा ख़ुशगवार होती है।

आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन उसका ग़ुरूर है।

जवानी पुर-जोश होती है वो ग़ुस्से से आग बन जाती है और हमदर्दी से पानी।

जो चीज़ मसर्रत-बख़्श नहीं हो सकती, वह हसीन नहीं हो सकती।

जिस तरह अंग्रेज़ों की ज़बान अंग्रेज़ी, जापान की जापानी, ईरान की ईरानी, चीन की चीनी है, इसी तरह हिन्दुस्तान की क़ौमी ज़बान को इसी वज़न पर हिन्दुस्तानी कहना मुनासिब ही नहीं बल्कि लाज़मी है।

सच्ची शायरी की तारीफ़ यह है कि तस्वीर खींच दे। इसी तरह सच्ची तस्वीर की सिफ़त यह है कि उसमें शायरी का मज़ा आए।

अदब की बेहतरीन तारीफ़ तन्क़ीद-ए-हयात है। अदब को हमारी ज़िंदगी पर तबसेरा करना चाहिए।

वो कहानी सबसे नाक़िस समझी जाती है जिसमें मक़्सद का साया भी नज़र आए।

हिन्दुस्तानी, उर्दू और हिन्दी की चार-दीवारी को तोड़ कर दोनों में रब्त-ज़ब्त पैदा कर देना चाहती है, ताकि दोनों एक-दूसरे के घर बे-तकल्लुफ़ जा सकें। महज़ मेहमान की हैसियत से नहीं, बल्कि घर के आदमी की तरह।

हमें हुस्न का मेयार तब्दील करना होगा। अभी तक उसका मेयार अमीराना और ऐश परवराना था।

क़ौमी ज़बान के बग़ैर किसी क़ौम का वुजूद ही ज़हन में नहीं आता।

फ़नकार को अवाम की अदालत में अपने हर अमल के लिए जवाब देना होगा।

आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन उसका अहंकार है।

हिन्दुस्तान की क़ौमी ज़बान तो वह उर्दू हो सकती है जो अरबी और फ़ारसी के ग़ैर-मानूस अलफ़ाज़ से गिराँ-बार है और वो हिन्दी जो संस्कृत के सक़ील अलफ़ाज़ से लदी हुई है। हमारी क़ौमी ज़बान तो वही हो सकती है जिसकी बुनियाद उमूमियत पर क़ायम हो।

हमारी कसौटी पर वो अदब खरा उतरेगा जिसमें तफ़क्कुर हो, आज़ादी का जज़्बा हो, हुस्न का जोहर हो, तामीर की रूह हो, ज़िंदगी की हक़ीक़तों की रौशनी हो। जो हम में हरकत, हंगामा और बेचैनी पैदा करे, सुलाये नहीं। क्योंकि अब और ज़्यादा सोना मौत की अलामत होगी।

ऐसे बहुत से लोग हैं जो मुसव्विरी से नफ़रत रखते हैं। मेरी निगाह में ऐसे आदमियों की कुछ वक़अत नहीं।

इस वक़्त हिन्दुस्तान को शायरी से ज़्यादा मुसव्विरी की ज़रूरत है। ऐसे मुल्क में जहाँ सद्हा मुख़्तलिफ़ ज़बानें राइज हैं, अगर कोई आम ज़बान राइज हो सकती है तो वो तस्वीर की ज़बान है।

आर्टिस्ट हम में हुस्न का एहसास पैदा कर देता है और मुहब्बत की गर्मी। उसका एक फ़िक़्रा, एक लफ़्ज़, एक किनाया इस तरह हमारे अंदर बैठता है कि हमारी रूह रौशन हो जाती है।

आर्ट का राज़ ऐसी हक़ीक़त-नुमाई में है जिस पर असलियत का गुमान हो।

हम अदीब से यह तवक़्क़ो रखते हैं कि वो अपनी बेदार-मग़ज़ी, अपनी वुसअत-ए-ख़्याली से हमें बेदार करे। उसकी निगाह इतनी बारीक और इतनी गहरी हो कि हमें उसके कलाम से रुहानी सुरूर और तक़वियत हासिल हो।

अख़लाक़ियात और अदबियात की मंज़िल-ए- मक़्सूद एक ही है, सिर्फ़ उनके तर्ज़-ए-ख़िताब में फ़र्क़ है। अख़लाक़ियात दलीलों और नसीहतों से अक़्ल और ज़हन को मुतास्सिर करने की कोशिश करती है। अदब ने अपने लिए कैफ़ियात और जज़्बात का दायरा चुन लिया है।

अदीब का मिशन महज़ निशात, मह्फ़िल-आराई और तफ़रीह नहीं है। वह सियासत के पीछे चलने वाली हक़ीक़त नहीं बल्कि उसके आगे मशाल दिखाते हुए चलने वाली हक़ीक़त है।

हर एक ज़बान का एक फ़ित्री रुज्हान होता है। उर्दू को फ़ारसी और अरबी से फ़ित्री मुनासबत है। हिन्दी को संस्कृत और प्राकृत से। इस रुज्हान को हम किसी ताक़त से भी रोक नहीं सकते, फिर इन दोनों को बाहम मिलाने की कोशिश में क्यों इन दोनों को नुक़सान पहुंचाएं।

हमने समझ रखा है कि हाज़िर-तबियत और रवां-क़लम ही अदब के लिए काफ़ी है। हमारी अदबी पस्ती का बाइस यही ख़्याल है। हमें अपने अदीब का इल्मी मेयार ऊंचा करना पड़ेगा।

भारत वर्ष में ज़बान की ग़लाज़त और बुशरे का झल्लापन हुकूमत का जुज़्व ख़्याल किया जाता है।

हमारे लिए वो शायराना जज़्बात बे-मानी हैं, जिनसे दुनिया की बे-सिबाती हमारे दिल पर और ज़्यादा मुसल्लत हो जाए और जिनसे हमारे दिलों पर मायूसी तारी हो जाएगी।

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Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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