रईस फ़रोग़
ग़ज़ल 32
नज़्म 32
अशआर 9
इश्क़ वो कार-ए-मुसलसल है कि हम अपने लिए
एक लम्हा भी पस-अंदाज़ नहीं कर सकते
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मेरा भी एक बाप था अच्छा सा एक बाप
वो जिस जगह पहुँच के मरा था वहीं हूँ मैं
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हुस्न को हुस्न बनाने में मिरा हाथ भी है
आप मुझ को नज़र-अंदाज़ नहीं कर सकते
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चित्र शायरी 2
वीडियो 3
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