रईस फ़रोग़ के शेर
फ़स्ल तुम्हारी अच्छी होगी जाओ हमारे कहने से
अपने गाँव की हर गोरी को नई चुनरिया ला देना
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मेरा भी एक बाप था अच्छा सा एक बाप
वो जिस जगह पहुँच के मरा था वहीं हूँ मैं
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टैग : पिता
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इश्क़ वो कार-ए-मुसलसल है कि हम अपने लिए
एक लम्हा भी पस-अंदाज़ नहीं कर सकते
आएगा मेरे बाद 'फ़रोग़' इन का ज़माना
जिस दौर का मैं हूँ मिरे अशआर नहीं हैं
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अपने हालात से मैं सुल्ह तो कर लूँ लेकिन
मुझ में रू-पोश जो इक शख़्स है मर जाएगा
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हुस्न को हुस्न बनाने में मिरा हाथ भी है
आप मुझ को नज़र-अंदाज़ नहीं कर सकते
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इक यही दुनिया बदलती है 'फ़रोग़'
कैसी कैसी अजनबी दुनियाओं में
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मैं ने कितने रस्ते बदले लेकिन हर रस्ते में 'फ़रोग़'
एक अंधेरा साथ रहा है रौशनियों के हुजूम लिए
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लोग अच्छे हैं बहुत दिल में उतर जाते हैं
इक बुराई है तो बस ये है कि मर जाते हैं
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