- पुस्तक सूची 185767
-
-
पुस्तकें विषयानुसार
-
बाल-साहित्य1800
औषधि608 आंदोलन261 नॉवेल / उपन्यास3772 -
पुस्तकें विषयानुसार
- बैत-बाज़ी12
- अनुक्रमणिका / सूची5
- अशआर62
- दीवान1347
- दोहा62
- महा-काव्य94
- व्याख्या149
- गीत89
- ग़ज़ल818
- हाइकु11
- हम्द34
- हास्य-व्यंग41
- संकलन1429
- कह-मुकरनी7
- कुल्लियात650
- माहिया17
- काव्य संग्रह4115
- मर्सिया343
- मसनवी712
- मुसद्दस47
- नात456
- नज़्म1068
- अन्य57
- पहेली17
- क़सीदा153
- क़व्वाली19
- क़ित'अ53
- रुबाई268
- मुख़म्मस18
- रेख़्ती16
- शेष-रचनाएं27
- सलाम29
- सेहरा8
- शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा13
- तारीख-गोई20
- अनुवाद78
- वासोख़्त24
शमीम हनफ़ी के लेख
मंटो और फ़ह्हाशी
(1) मंटो एक वाक़िए’ का उ’नवान है। हमारे अफ़सानवी अदब की तारीख़ के शायद सबसे अहम और बा-मअ’नी और मुकम्मल वाक़िए’ का। इस वाक़िए’ का आग़ाज़ उसकी पहली कहानी के साथ हुआ था। अब अगर आप किसी अदबी मुअर्रिख़ से रुजू’ करें तो वो बताएगा कि इस वाक़िए’ का नुक़्ता-ए-इख़्तिताम
अदब में इंसान दोस्ती का तसव्वुर एक सियाह हाशिए के साथ
बीसवीं सदी तारीख़ की सबसे ज़ियादा पुर-तशद्दुद सदी थी। इक्कीसवीं सदी के शानों पर इसी रिवायत का बोझ है। जिस्मानी तशद्दुद से क़त’-ए-नज़र, बीसवीं सदी ने इंसान को तशद्दुद के नित-नए रास्तों पर लगा दिया। तहज़ीबी, लिसानी, सियासी, जज़्बाती तशद्दुद के कैसे-कैसे
मीर और ग़ालिब
मीर और ग़ालिब का नाम एक साथ ज़हन में जो आता है तो सिर्फ़ इसलिए नहीं कि दोनों ने अपने इज़हार के लिए शे’र की एक ही सिन्फ़ को अव्वलियत दी या ये कि दोनों का तअ’ल्लुक़ अदब और तहज़ीब की उस रिवायत से था जो ज़माने के फ़र्क़ के साथ हमारी इज्तिमाई ज़िंदगी के एक ही
तक़सीम का अदब और तशद्दुद की शेरियात
ख़वातीन-ओ-हज़रात आज की गुफ़्तगू का मौज़ू’ है तक़्सीम का अदब और इससे मुरत्तब होने वाली शे’रियात, जिसका शनास-नामा फ़िर्का-वाराना तशद्दुद के तजरबे से मुंसलिक है। तशद्दुद हमारे ज़माने का ग़ालिब उस्लूब है। बीसवीं सदी को इंसानी तारीख़ की सबसे ज़ियादा तशद्दुद-आमेज़
अवामी अदब के मसायल और उर्दू की अदबी रिवायत
अदब की अ’वामी सिन्फ़ें और रवायतें उर्दू मुआ’शरे में अपने लिए कोई मुस्तक़िल जगह क्यों नहीं बना सकीं? इस सवाल का जवाब बहुत वाज़ेह है और उतना ही अफ़सोस-नाक भी। उर्दू की अशराफ़ियत (Sophistication) और मदनियत (Urbanity) ने बर्र-ए-सग़ीर के मजमूई’’ कल्चर में जिन
मियाँ नज़ीर
मियाँ नज़ीर शायद उर्दू के तन्हा शाइ’र हैं जिन्होंने किसी मसअले से सरोकार नहीं रखा, सो पढ़ने वाले के लिए भी मसअला न बन सके। एक मुद्दत तक उनके तईं जो बे-नियाज़ी आ’म रही, उसका बुनियादी सबब यही है कि उन्होंने अपने पढ़ने या सुनने वालों से कभी कोई ऐसा मुतालिबा
join rekhta family!
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
GET YOUR PASS
-
बाल-साहित्य1800
-