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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अहमर नदीम

1998 | दिल्ली, भारत

ग़ज़ल कहने वाले अहम नौजवान शायरों में शामिल, शायरी में रिवायतों की पासदारी के साथ हम-अस्र शेरी और समाजी तक़ाज़ों का बेबाक बयान

ग़ज़ल कहने वाले अहम नौजवान शायरों में शामिल, शायरी में रिवायतों की पासदारी के साथ हम-अस्र शेरी और समाजी तक़ाज़ों का बेबाक बयान

अहमर नदीम

ग़ज़ल 22

अशआर 14

कितने रिश्तों का मैं ने भरम रख लिया

इक त'अल्लुक़ से दामन छुड़ाते हुए

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दिल लगाने को सारा जहाँ था मगर

सोचता कौन है दिल लगाते हुए

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क़ाफ़िले में हर इक फ़र्द मुख़्तार है

क़ाफ़िला देख लेना लुटेगा ज़रूर

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चुपके चुपके अपने अंदर जाते हैं

सहमे सहमे बाहर आना पड़ता है

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ये कैसी फ़साहत कि समझ में नहीं आती

तहरीर-ए-मोहब्बत ज़रा आसान लिखा कर

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