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Ameeta Parsuram Meeta's Photo'

अमीता परसुराम मीता

1955 | दिल्ली, भारत

अमीता परसुराम मीता के शेर

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यादों का इक हुजूम था तन्हा नहीं थी मेरी ज़ात

ख़ुद-कलामी में हुई तमाम शब उन्हीं से बात

निहाँ सी चादर की सिलवटों में जाने कितनी हक़ीक़तें हैं

कहीं तो क़िस्से विसाल के हैं कहीं सिसकती नदामतें हैं

मिरे हम-सफ़र मिरी जान-ए-जाँ कहूँ और क्या

तिरी क़ुर्बतों में हैं दूरियाँ कहूँ और क्या

है जीना और मरना जब अकेले ही तो मेरे दिल

किसी का दूर जाना क्या किसी का पास आना क्या

तुम्हें 'आदत है तुम अक्सर मोहब्बत भूल जाते हो

हमें मा'लूम है सब रास्ते तुम पर नहीं रुकते

हों ख़्वाहिशें गिला कोई जफ़ा कोई

सवाल अह्द-ए-वफ़ा का हो वही इश्क़ है

पर कतर पाई जब ख़्वाबों के

बंद ही कर दीं खिड़कियाँ मैं ने

लम्हा-लम्हा रंग बदलती दुनिया में

तुम चाहो जन्मों के रिश्ते पागल हो

दफ़ना दिया था जिन को गूँजे हैं हर तरफ़ अब

मेरी ख़मोशियों को आवाज़ मिल गई है

अगर है ज़िंदगी इक जश्न तो ना-मेहरबाँ क्यों है

फ़सुर्दा रंग में डूबी हुई हर दास्ताँ क्यों है

खींच लाया तुझे एहसास-ए-मोहब्बत मुझ तक

हम-सफ़र होने का तेरा भी इरादा कब था

मंज़िल अपनी ढूँड रहे हो

रस्ता दूजे का चलते हो

उस का वा'दा है लौट आने का

और मिरा इंतिज़ार का वा'दा

का'बा-ओ-दैर में अब ढूँड रही है दुनिया

जो दिल-ओ-जान में बस्ता था ख़ुदा और ही था

चलो इक दूसरे पे आज ये एहसान ही कर दें

हम अपने बीच की दूरी का अब ए'लान ही कर दें

बहुत निभाया है हम ने तो ज़िंदगी तुझ से

ज़रा मिला भी है तुझ से बहुत बक़ाया है

वो जो कहते हैं कि उन का नहीं दुश्मन कोई

उन से पूछे तो कोई आप ख़ुदा हैं क्या हैं

उन को ये शिकायत है की हम मुड़ के आए

क़दमों की मिरे सुस्त-रवी वो नहीं समझे

बरसेंगी आज रहमतें आमद है यार की

नायाब हैं ये घड़ियाँ तिरे इंतिज़ार की

तज्दीद-ए-ज़िंदगी के इशारे हुए तो हैं

कुछ पल सही वो आज हमारे हुए तो हैं

बदल कर आइना तुम देख लो कुछ भी नहीं होगा

कभी वाज़ेह कभी धुँदला मगर सच फिर वही होगा

सत्ता भी वही ज़ुल्म वही वो ही सितम जौर

मुफ़्लिस की भी है माँग वही और कोई और

किसी के दिल में रहना है

तो फिर कुछ दूरियाँ रखना

मौसम भी वही गर्म हवाएँ भी उसी तौर

है फ़र्क़ बस इतना कि सितमगर है कोई और

मौसम भी वही गर्म हवाएँ भी उसी तौर

है फ़र्क़ बस इतना कि सितमगर है कोई और

मज़ा तभी है मोहब्बत में ग़र्क़ होने का

मैं डूब जाऊँ तो ये हो कि तू भी तो रहे

बरसेंगी आज रहमतें आमद है यार की

नायाब हैं ये घड़ियाँ तिरे इंतिज़ार के

चाहती थी कि लोग कम ही मिलें

सो अँधेरों में ही क़याम किया

गुज़र ही जाएँगे तेरे फ़िराक़ के मौसम

हर इंतिज़ार के आगे भी हैं मक़ाम कई

मेरी साँसों ने आज दस्तक दी

याद आया कि हाँ मैं ज़िंदा हूँ

तिरी यादों से महका है मेरी तन्हाई का आलम

क़यामत तक इन्हीं तन्हाइयाँ में डूबना चाहूँ

बदलते मौसमों से क्या गिला उन की तो फ़ितरत है

मगर इंसाँ का रिश्तों में ये आना और जाना क्या

दर्द जब ज़ब्त की हर हद से गुज़र जाता है

ख़्वाब तन्हाई की आग़ोश में सो जाते हैं

मोहब्बत उम्र भर की राएगाँ करना नहीं अच्छा

सँभल दिल अना को आसमाँ करना नहीं अच्छा

सुन के हर सम्त सिसकियाँ मैं ने

जाने क्यों कर लीं दूरियाँ मैं ने

क़दम-क़दम पे तिरे रोकने की कोशिश ने

क़दम-क़दम पे मिरा हौसला बढ़ाया है

सुन के हर सम्त सिसकियाँ मैं ने

जाने क्यों कर लीं दूरियाँ मैं ने

ज़बाँ कर के मुक़फ़्फ़ल तुम सदाएँ चाहते हो

सज़ा देते हो पहले फिर दुआएँ चाहते हो

ज़िंदगी अब तुझे सँवारें क्या

कोशिशें सारी बे-असर शायद

तुम्हें हम से मोहब्बत है हमें तुम से मोहब्बत है

अना का दायरा फिर भी हमारे दरमियाँ क्यों है

हम-सफ़र वो जो हम-सफ़र ही था

और फिर कर लीं दूरियाँ मैं ने

हों ख़्वाहिशें गिला कोई जफ़ा कोई

सवाल अहद-ए-वफ़ा का हो वही इश्क़ है

हम ने हज़ार फ़ासले जी कर तमाम शब

इक मुख़्तसर सी रात को मुद्दत बना दिया

अब ज़माना है बेवफ़ाई का

सीख लें हम भी ये हुनर शायद

गँवा दी उम्र जिस को जीतने में

वो दुनिया मेरी जाँ तेरी मेरी

मिले क़तरा क़तरा ये क्या ज़िंदगी है

दरिया-ए-रहमत वही तिश्नगी है

अधूरी वफ़ाओं से उम्मीद रखना

हमारे भी दिल की अजब सादगी है

दो किनारों को मिलाया था फ़क़त लहरों ने

हम अगर उस के थे वो भी हमारा कब था

सुब्ह-ए-रौशन को अंधेरों से भरी शाम दे

दिल के रिश्ते को मिरी जान कोई नाम दे

आज मौसम भी कुछ उदास मिला

आज तन्हाई भी अकेली है

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