Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

अनस ख़ान के दोहे

1.2K
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

उम्र से धोका खा गए परखा नहीं ज़मीर

बच्चा बच्चा ही रहा बढ़ता रहा शरीर

अपनी ज़िद की आग में ज़ख़्मी किए गुलाब

इक वहशी ने डाल कर कलियों पर तेज़ाब

सतरंगी रौशनी कैसी शक्ल बनाई

जो रंग अपनाया नहीं वो ही दिया दिखाई

ये दुनिया की रीत है या दुनिया का दीन

जो ऊपर चढ़ने लगे खींचे उसे ज़मीन

मुल्ला पंडित सब यहाँ करते रहे फ़रेब

सोच रहा न्यूटन वहाँ गिरता क्यों है सेब

मस्जिद में पैदा हुआ सीखी वही ज़बान

तोता मंदिर पे चढ़ा देने लगा अज़ान

नारी जग की नींव है रिश्तों का आधार

जैसी नज़रें डालिए वैसा ले आकार

बड़े शहर से अपनी दूरी रखिए मीलों मील

जितनी दूर समुंदर से हो उतनी मीठी झील

दुनिया एक सराब है पुख़्ता हुआ यक़ीन

मैं जितना चलता गया उतनी चली ज़मीन

मज़हब ने जो ठोंक दी हिली नहीं वो कील

क़ुदरत हर मख़्लूक़ को रोज़ करे तब्दील

अपने अंदर मैं गया इक दिन करने सैर

इतना आगे बढ़ गया पीछे छूटे पैर

इन आँखों में क़ैद है इस दुनिया का सार

बाहर ख़ाली अक्स है अंदर है संसार

पंछी उड़ कर चल दिया सूख गई जब झील

मौत है असली ज़िंदगी मौत नहीं तकमील

दिन में मज़हब जागता लाख भली है रात

हर तन लागे एक सा इक ही लागे ज़ात

क्या माँगें भगवान से क्या देगा ये दैर

रिक्शा ख़ुद चलता नहीं बिना चलाए पैर

रावन ज़िंदा ही रहा सदियों जला शरीर

तरकश में था ही नहीं कभी राम के तीर

तन बूढ़ा होने लगा धुंधले हो गए ख़्वाब

रंग स्याही का उड़ा मिटने लगी किताब

पुरखों की तस्वीर गले में वाहिद बनी दलील

सारे घर का मान सँभाले एक अकेली कील

पहले हुआ किसान का बालू बालू खेत

फिर आँधी महँगाई की भर गई मुँह में रेत

हर करवट पर हलचल होए मन भी आपा खोए

कौन बसा है मेरे अंदर खनन खनन खन होए

अपने ही सब हाथ छुड़ा लें बुरा चले जो काल

उम्रें जितनी बढ़ती जाएँ उड़ते जाएँ बाल

रूह नहीं ये रुई है इंसाँ एक लिहाफ़

जब जब ये मैला हुआ बदला गया ग़िलाफ़

तू मुझ में महदूद है मैं तुझ में महदूद

मेरे साए में तिरा दिखने लगा वजूद

एक आँख में दो पतली हूँ तब होगा आधार

इक पुतली अंतर्मन देखे इक देखे संसार

रूह बदन के साथ थी जग ने दे दी ताप

पानी नीचे रह गया ऊपर उड़ गई भाप

कोई सँभाले दैर तो कोई बचाए दीन

'अनस' बचा लो आप ही मरती हुई ज़मीन

जिन काँधों पर झूल कर छूता था आकाश

इक दरवाज़े में मिली उसी पेड़ की लाश

सब तेरी साइंस है फिर ये कैसा योग

ख़ुदा नुमाइंदे तिरे इतने पिछड़े लोग

मिले जो नैनन मद-भरे धड़का मन का द्वार

तन के इस दरबार का मन है चौकीदार

कल ये ही बन जाएगी उसी गले की फाँस

आज हवा अनमोल है खींच ज़ियादा साँस

मछली जोगन हो गई छोड़ दिया है ताल

हम ने अनजाने कभी फेंक दिया था जाल

बदन अँधेरी कोठरी खोजो दिया-सलाई

'अनस' जगाओ चेतना रौशन करो ख़ुदाई

सुध-बुध खो गई बाँवरी जिस दिन खुला फ़रेब

नदिया में गागर मिली पनघट पर पाज़ेब

तू तो फ़क़त ज़मीन है फिर भी तिरा क़ुसूर

गर इमली के बीज से निकला नहीं खजूर

छुपा गया गहराई में दरिया अपना हाल

मैं जब भी अंदर गया बाहर दिया उछाल

पेड़ ज़र्द होने लगे फूल हुए रसहीन

लहू शजर का खींच कर पीने लगी ज़मीन

पैरों से कमज़ोर थी फिर भी पल्टा खेल

लिपट लिपट कर पेड़ से ऊपर चढ़ गई बेल

मन के भीतर प्रेम है बाहर कूच कठोर

उतना मीठा जल मिले जितना गहरा बोर

ख़ुद को छोटा कर लिया ख़ुद में ख़ुद को भींच

बिल-आख़िर चरख़ाब ने लिया समुंदर खींच

आँखों में पानी भरा पानी में गिर्दाब

ख़्वाब हथेली पर लिए खड़ा रहा तालाब

घिस गई हड्डी रीढ़ की झुकने लगा शरीर

लोच खा गई छत मिरी बिखर गए शहतीर

शराबोर पलकें हुईं काजल गया है फैल

अश्कों के सैलाब में बिखर गई खपरैल

ये कह कर तलवार ने छोड़ी आज मियान

क़ैद हिसार-ए-जिस्म में अब रहेगी जान

अपनों को जब हम ने परखा खुल गई सब की पोल

जिगर कलेजा थर-थर काँपे जीभ खाई झोल

फ़ितरत से की इस क़दर इंसानों ने छेड़

निकला जंगल जंग पर ले मुट्ठी भर पेड़

कूज़ा-गर की उँगलियाँ रूह मिरी मढ़ जाएँ

हौले से तन को छुएँ अंदर तक गढ़ जाएँ

दूर क़यामत रोक दे कर मुझ को बर्बाद

मेरे ख़ातिर आए क्यों दुनिया पर उफ़्ताद

अम्बर तक लपटें उठीं जला गगन का छोर

मेरी बिरहन थी जहाँ धुआँ उठा उस ओर

माज़ी कब का सो गया सर पर चादर तान

'अनस' कहाँ से जिस्म पर आने लगे निशान

हम ने की है गाए की मज़हब से पहचान

लेकिन देखा गाए ने सब को एक समान

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

GET YOUR PASS
बोलिए