अनस ख़ान

दोहा 59

उम्र से धोका खा गए परखा नहीं ज़मीर

बच्चा बच्चा ही रहा बढ़ता रहा शरीर

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अपनी ज़िद की आग में ज़ख़्मी किए गुलाब

इक वहशी ने डाल कर कलियों पर तेज़ाब

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ये दुनिया की रीत है या दुनिया का दीन

जो ऊपर चढ़ने लगे खींचे उसे ज़मीन

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मुल्ला पंडित सब यहाँ करते रहे फ़रेब

सोच रहा न्यूटन वहाँ गिरता क्यों है सेब

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मस्जिद में पैदा हुआ सीखी वही ज़बान

तोता मंदिर पे चढ़ा देने लगा अज़ान

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