अनवर शऊर के शेर
अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँ
अब मैं अक्सर मैं नहीं रहता तुम हो जाता हूँ
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फ़रिश्तों से भी अच्छा मैं बुरा होने से पहले था
वो मुझ से इंतिहाई ख़ुश ख़फ़ा होने से पहले था
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बुरा बुरे के अलावा भला भी होता है
हर आदमी में कोई दूसरा भी होता है
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टैग : इंसान
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इत्तिफ़ाक़ अपनी जगह ख़ुश-क़िस्मती अपनी जगह
ख़ुद बनाता है जहाँ में आदमी अपनी जगह
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सिर्फ़ उस के होंट काग़ज़ पर बना देता हूँ मैं
ख़ुद बना लेती है होंटों पर हँसी अपनी जगह
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जनाब के रुख़-ए-रौशन की दीद हो जाती
तो हम सियाह-नसीबों की ईद हो जाती
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टैग : दीदार
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किस क़दर बद-नामियाँ हैं मेरे साथ
क्या बताऊँ किस क़दर तन्हा हूँ मैं
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काफ़ी नहीं ख़ुतूत किसी बात के लिए
तशरीफ़ लाइएगा मुलाक़ात के लिए
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टैग : मुलाक़ात
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मुस्कुराए बग़ैर भी वो होंट
नज़र आते हैं मुस्कुराए हुए
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टैग : लब
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लगी रहती है अश्कों की झड़ी गर्मी हो सर्दी हो
नहीं रुकती कभी बरसात जब से तुम नहीं आए
किसी ग़रीब को ज़ख़्मी करें कि क़त्ल करें
निगाह-ए-नाज़ पे जुर्माने थोड़ी होते हैं
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मुस्कुरा कर देख लेते हो मुझे
इस तरह क्या हक़ अदा हो जाएगा
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टैग : मुस्कुराहट
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'शुऊर' सिर्फ़ इरादे से कुछ नहीं होता
अमल है शर्त इरादे सभी के होते हैं
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टैग : प्रेरणादायक
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था व'अदा शाम का मगर आए वो रात को
मैं भी किवाड़ खोलने फ़ौरन नहीं गया
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हमेशा हाथों में होते हैं फूल उन के लिए
किसी को भेज के मंगवाने थोड़ी होते हैं
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हैं पत्थरों की ज़द पे तुम्हारी गली में हम
क्या आए थे यहाँ इसी बरसात के लिए
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कह तो सकता हूँ मगर मजबूर कर सकता नहीं
इख़्तियार अपनी जगह है बेबसी अपनी जगह
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कभी रोता था उस को याद कर के
अब अक्सर बे-सबब रोने लगा हूँ
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टैग : याद
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आदमी के लिए रोना है बड़ी बात 'शुऊर'
हँस तो सकते हैं सब इंसान हँसी में क्या है
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वो मुझ से रूठ न जाती तो और क्या करती
मिरी ख़ताएँ मिरी लग़्ज़िशें ही ऐसी थीं
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'शुऊर' ख़ुद को ज़हीन आदमी समझते हैं
ये सादगी है तो वल्लाह इंतिहा की है
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दोस्त कहता हूँ तुम्हें शाएर नहीं कहता 'शुऊर'
दोस्ती अपनी जगह है शाएरी अपनी जगह
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ज़माने के झमेलों से मुझे क्या
मिरी जाँ! मैं तुम्हारा आदमी हूँ
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बहुत इरादा किया कोई काम करने का
मगर अमल न हुआ उलझनें ही ऐसी थीं
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सच है उम्र भर किस का कौन साथ देता है
ग़म भी हो गया रुख़्सत दिल को छोड़ कर तन्हा
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टैग : ग़म
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हम बुलाते वो तशरीफ़ लाते रहे
ख़्वाब में ये करामात होती रही
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टैग : ख़्वाब
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गो कठिन है तय करना उम्र का सफ़र तन्हा
लौट कर न देखूँगा चल पड़ा अगर तन्हा
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'शुऊर' तुम ने ख़ुदा जाने क्या किया होगा
ज़रा सी बात के अफ़्साने थोड़ी होते हैं
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गो मुझे एहसास-ए-तन्हाई रहा शिद्दत के साथ
काट दी आधी सदी एक अजनबी औरत के साथ
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टैग : तन्हाई
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मिरी हयात है बस रात के अँधेरे तक
मुझे हवा से बचाए रखो सवेरे तक
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तेरी आस पे जीता था मैं वो भी ख़त्म हुई
अब दुनिया में कौन है मेरा कोई नहीं मेरा
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निज़ाम-ए-ज़र में किसी और काम का क्या हो
बस आदमी है कमाने का और खाने का
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टैग : मकैनिकल लाइफ़
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वो रंग रंग के छींटे पड़े कि उस के ब'अद
कभी न फिर नए कपड़े पहन के निकला मैं
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कड़ा है दिन बड़ी है रात जब से तुम नहीं आए
दिगर-गूँ हैं मिरे हालात जब से तुम नहीं आए
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कोई ज़ंजीर नहीं तार-ए-नज़र से मज़बूत
हम ने इस चाँद पे डाली है कमंद आँखों से
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