संपूर्ण
परिचय
ई-पुस्तक48
लेख14
उद्धरण19
रेखाचित्र2
शेर20
ग़ज़ल34
नज़्म20
ऑडियो 20
वीडियो1
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रुबाई30
बाक़र मेहदी
लेख 14
उद्धरण 19
रेखाचित्र 2
अशआर 20
एक तूफ़ाँ की तरह कब से किनारा-कश है
फिर भी 'बाक़र' मिरी नज़रों में भरम है उस का
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चले तो जाते हो रूठे हुए मगर सुन लो
हर एक मोड़ पे कोई तुम्हें सदा देगा
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दामन-ए-सब्र के हर तार से उठता है धुआँ
और हर ज़ख़्म पे हंगामा उठा आज भी है
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फ़ासले ऐसे कि इक उम्र में तय हो न सकें
क़ुर्बतें ऐसी कि ख़ुद मुझ में जनम है उस का
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ये सोच कर तिरी महफ़िल से हम चले आए
कि एक बार तो बढ़ जाए हौसला दिल का
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