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मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी

1923 - 2018 | कराची, पाकिस्तान

लब्धप्रतिष्ठ पाकिस्तानी हास्य-व्यंगकार, ‘चराग़ तले’ और ‘आबे गुम’ जैसी अद्वितीय पुस्तकों के रचनाकार.

लब्धप्रतिष्ठ पाकिस्तानी हास्य-व्यंगकार, ‘चराग़ तले’ और ‘आबे गुम’ जैसी अद्वितीय पुस्तकों के रचनाकार.

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी

उद्धरण 111

लाहौर की बाअ्ज़ गलियाँ इतनी तंग हैं कि अगर एक तरफ़ से औरत रही हो और दूसरी तरफ़ से मर्द तो दरमियान में सिर्फ़ निकाह की गुंजाइश बचती है।

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ग़ुस्सा जितना कम होगा उस की जगह उदासी लेती जाएगी।

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मर्द की आँख और औरत की ज़बान का दम सबसे आख़िर में निकलता है।

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मूंगफली और आवारगी में ख़राबी यह है कि आदमी एक दफ़ा शुरू कर दे तो समझ में नहीं आता, ख़त्म कैसे करे।

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ग़ालिब दुनिया में वाहिद शायर है जो समझ में आए तो दुगना मज़ा देता है।

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तंज़-ओ-मज़ाह 31

पुस्तकें 45

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