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सलीम अहमद

1927 - 1983 | कराची, पाकिस्तान

पाकिस्तान के प्रमुखतम आलोचकों में विख्यात/ऐंटी-गज़ल रूझान और आधुनिकता-विरोधी विचारों के लिए प्रसिद्ध

पाकिस्तान के प्रमुखतम आलोचकों में विख्यात/ऐंटी-गज़ल रूझान और आधुनिकता-विरोधी विचारों के लिए प्रसिद्ध

सलीम अहमद

ग़ज़ल 63

नज़्म 22

अशआर 70

जाने शेर में किस दर्द का हवाला था

कि जो भी लफ़्ज़ था वो दिल दुखाने वाला था

सच तो कह दूँ मगर इस दौर के इंसानों को

बात जो दिल से निकलती है बुरी लगती है

दर-ब-दर ठोकरें खाईं तो ये मालूम हुआ

घर किसे कहते हैं क्या चीज़ है बे-घर होना

घास में जज़्ब हुए होंगे ज़मीं के आँसू

पाँव रखता हूँ तो हल्की सी नमी लगती है

निकल गए हैं जो बादल बरसने वाले थे

ये शहर आब को तरसेगा चश्म-ए-तर के बग़ैर

लेख 19

पुस्तकें 15

वीडियो 20

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

सलीम अहमद

सलीम अहमद

सलीम अहमद

सलीम अहमद

सलीम अहमद

सलीम अहमद

सलीम अहमद

titli ne kaha tha mashrik mashrik hai

सलीम अहमद

दिलों में दर्द भरता आँख में गौहर बनाता हूँ

सलीम अहमद

नुक़्ता

हर तरफ़ से इन्फ़िरादी जब्र की यलग़ार है सलीम अहमद

जाने किसी ने क्या कहा तेज़ हवा के शोर में

सलीम अहमद

जाने किसी ने क्या कहा तेज़ हवा के शोर में

सलीम अहमद

जिस का इंकार भी इंकार न समझा जाए

सलीम अहमद

तिरे साँचे में ढलता जा रहा हूँ

सलीम अहमद

दिल के अंदर दर्द आँखों में नमी बन जाइए

सलीम अहमद

दिल हुस्न को दान दे रहा हूँ

सलीम अहमद

मैं सर छुपाऊँ कहाँ साया-ए-नज़र के बग़ैर

सलीम अहमद

मैं सर छुपाऊँ कहाँ साया-ए-नज़र के बग़ैर

सलीम अहमद

मेरा दुश्मन

उस ने जो ज़र्ब लगाई मुझे भरपूर लगी सलीम अहमद

मशरिक़ हार गया

'किपलिंग' ने कहा था सलीम अहमद

ऑडियो 18

मैं सर छुपाऊँ कहाँ साया-ए-नज़र के बग़ैर

कोई सितारा-ए-गिर्दाब आश्ना था मैं

जाने किसी ने क्या कहा तेज़ हवा के शोर में

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