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Basir Sultan Kazmi's Photo'

बासिर सुल्तान काज़मी

1953 | मांचसटर, इंग्लैंड

आधुनिक शायर व नासिर काज़मी के पुत्र

आधुनिक शायर व नासिर काज़मी के पुत्र

बासिर सुल्तान काज़मी के शेर

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रुक गया हाथ तिरा क्यूँ 'बासिर'

कोई काँटा तो था फूलों में

गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी

वो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह

चमकी थी एक बर्क़ सी फूलों के आस-पास

फिर क्या हुआ चमन में मुझे कुछ ख़बर नहीं

जब भी मिले हम उन से उन्हों ने यही कहा

बस आज आने वाले थे हम आप की तरफ़

कैसे याद रही तुझ को

मेरी इक छोटी सी भूल

अब दिल को समझाए कौन

बात अगरचे है माक़ूल

'बासिर' तुम्हें यहाँ का अभी तजरबा नहीं

बीमार हो? पड़े रहो, मर भी गए तो क्या

अपनी बातों के ज़माने तो हवा-बुर्द हुए

अब किया करते हैं हम सूरत-ए-हालात पे बात

मौजिब-ए-रंग-ए-चमन ख़ून-ए-शहीदाँ निकला

मौत की जेब से भी ज़ीस्त का सामाँ निकला

बढ़ गई तुझ से मिल के तन्हाई

रूह जूया-ए-हम-सुबू थी बहुत

कुछ तो हस्सास हम ज़ियादा हैं

कुछ वो बरहम ज़ियादा होता है

तेरे दिए हुए दुख

तेरे नाम करेंगे

ख़त्म हुईं सारी बातें

अच्छा अब चलता हूँ मैं

तू जब सामने होता है

और कहीं होता हूँ मैं

दिल लगा लेते हैं अहल-ए-दिल वतन कोई भी हो

फूल को खिलने से मतलब है चमन कोई भी हो

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