हैरत इलाहाबादी
ग़ज़ल 12
अशआर 1
सुनी न एक भी ज़ालिम ने आरज़ू दिल की
ये किस के सामने हम अर्ज़-ए-हाल कर बैठे
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere