1890 - 1960 | मुरादाबाद, भारत
सबसे प्रमुख पूर्वाधुनिक शायरों में शामिल अत्याधिक लोकप्रियता के लिए विख्यात
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अपना ज़माना आप बनाते हैं अहल-ए-दिल
ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे
यूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ तिरे बग़ैर
आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं
तस्वीर के दो रुख़ हैं जाँ और ग़म-ए-जानाँ
इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है
दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद
आदत के ब'अद दर्द भी देने लगा मज़ा
बहुत हसीन सही सोहबतें गुलों की मगर
आदमी आदमी से मिलता है
आँखों में नमी सी है चुप चुप से वो बैठे हैं
दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं
हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं
कुछ खटकता तो है पहलू में मिरे रह रह कर
तुझे भूल जाना तो मुमकिन नहीं है
हाए रे मजबूरियाँ महरूमियाँ नाकामियाँ
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