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क़ौसर जायसी

1916 - 2005 | कानपुर, भारत

क़ौसर जायसी

ग़ज़ल 11

अशआर 10

अपने ग़म की फ़िक्र की इस दुनिया की ग़म-ख़्वारी में

बरसों हम ने दस्त-ए-जुनूँ से काम लिया दानाई का

आओ हम हँसते उठें बज़्म-ए-दिल-आज़ाराँ से

कौन एहसास को बीमार बना कर उट्ठे

ख़्वाब देखा था कहाँ चमकी है ताबीर कहाँ

हश्र का दिन मिरी फ़ितरत का उजाला निकला

छलक उठा जो कभी ख़ून-ए-आरज़ू मेरा

मिज़ा मिज़ा तिरी रानाइयों की बात गई

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वो अर्ज़-ए-ग़म पे मिरी उन का एहतिमाम-ए-सुकूत

तमाम शोरिश-ए-तफ़्सील-ए-वाक़िआत गई

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