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ग़ज़ल 11
शेर 10
कभी कभी सफ़र-ए-ज़िंदगी से रूठ के हम
तिरे ख़याल के साए में बैठ जाते हैं
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ये आरज़ू के सितारे ये इंतिज़ार के फूल
चमक रही हैं ख़ताएँ महक रहे हैं गुनाह
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अपने ग़म की फ़िक्र न की इस दुनिया की ग़म-ख़्वारी में
बरसों हम ने दस्त-ए-जुनूँ से काम लिया दानाई का
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तख़्लीक़ के पर्दे में सितम टूट रहे हैं
आज़र ही के हाथों से सनम टूट रहे हैं
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थी नज़र के सामने कुछ तो तलाफ़ी की उमीद
खेत सूखा था मगर दरिया में तुग़्यानी तो थी
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