ख़ुर्शीद रिज़वी
ग़ज़ल 66
नज़्म 15
अशआर 27
तू मुझे बनते बिगड़ते हुए अब ग़ौर से देख
वक़्त कल चाक पे रहने दे न रहने दे मुझे
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ये दौर वो है कि बैठे रहो चराग़-तले
सभी को बज़्म में देखो मगर दिखाई न दो
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दो हर्फ़ तसल्ली के जिस ने भी कहे उस को
अफ़्साना सुना डाला तस्वीर दिखा डाली
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