ख़ुर्शीद अहमद जामी
ग़ज़ल 29
नज़्म 2
अशआर 15
कोई हलचल है न आहट न सदा है कोई
दिल की दहलीज़ पे चुप-चाप खड़ा है कोई
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
चमकते ख़्वाब मिलते हैं महकते प्यार मिलते हैं
तुम्हारे शहर में कितने हसीं आज़ार मिलते हैं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
ज़िंदगानी के हसीं शहर में आ कर 'जामी'
ज़िंदगानी से कहीं हाथ मिलाए भी नहीं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
पहचान भी सकी न मिरी ज़िंदगी मुझे
इतनी रवा-रवी में कहीं सामना हुआ
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
यादों के दरख़्तों की हसीं छाँव में जैसे
आता है कोई शख़्स बहुत दूर से चल के
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए