मुबारक अज़ीमाबादी के शेर
जो उन को चाहिए वो किए जा रहे हैं वो
जो मुझ को चाहिए वो किए जा रहा हूँ मैं
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दिल लगाते ही तो कह देती हैं आँखें सब कुछ
ऐसे कामों के भी आग़ाज़ कहीं छुपते हैं
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तुम भूल गए मुझ को यूँ याद दिलाता हूँ
जो आह निकलती है वो याद-दहानी है
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टैग : आह
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अब वही सैद है जो था सय्याद
नाला बुलबुल का बे-असर न हुआ
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फिर न दरमाँ का कभी नाम 'मुबारक' लेना
कुफ़्र है दर्द-ए-मोहब्बत का मुदावा करना
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किसी की तमन्ना निकलती रही
मिरी आरज़ू हाथ मलती रही
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टैग : आरज़ू
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मिरी ख़ाक भी उड़ेगी बा-अदब तिरी गली में
तिरे आस्ताँ से ऊँचा न मिरा ग़ुबार होगा
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किसी ने बर्छियाँ मारीं किसी ने तीर मारे हैं
ख़ुदा रक्खे इन्हें ये सब करम-फ़रमा हमारे हैं
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क़ुबूल हो कि न हो सज्दा ओ सलाम अपना
तुम्हारे बंदे हैं हम बंदगी है काम अपना
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टैग : बंदगी
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तेरी बख़्शिश के भरोसे पे ख़ताएँ की हैं
तेरी रहमत के सहारे ने गुनहगार किया
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मुझ को मालूम है अंजाम-ए-मोहब्बत क्या है
एक दिन मौत की उम्मीद पे जीना होगा
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टैग : मौत
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तुम को समझाए 'मुबारक' कोई क्यूँकर अफ़्सोस
तुम तो रोने लगे यार और भी समझाने से
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बेवफ़ा उम्र दग़ाबाज़ जवानी निकली
न यही रहती है ज़ालिम न वही रहती है
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आने में कभी आप से जल्दी नहीं होती
जाने में कभी आप तवक़्क़ुफ़ नहीं करते
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शिकस्त-ए-तौबा की तम्हीद है तिरी तौबा
ज़बाँ पे तौबा 'मुबारक' निगाह साग़र पर
उस गली में हज़ार ग़म टूटा
आना जाना मगर नहीं छूटा
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कल तो देखा था 'मुबारक' बुत-कदे में आप को
आज हज़रत जा के मस्जिद में मुसलमाँ हो गए
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क्या कहें क्या क्या किया तेरी निगाहों ने सुलूक
दिल में आईं दिल में ठहरीं दिल में पैकाँ हो गईं
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मस्जिद की सर-ए-राह बिना डाल न ज़ाहिद
इस रोक से होने के नहीं कू-ए-बुताँ बंद
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कभी दिल की कली खिली ही नहीं
ए'तिबार-ए-बहार कौन करे
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जो लड़खड़ाए क़दम मय-कदे में मस्तों के
बग़ल में हज़रत-ए-नासेह थे बढ़ के थाम लिया
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आप का इख़्तियार है सब पर
आप पर इख़्तियार किस का है
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मिलो मिलो न मिलो इख़्तियार है तुम को
इस आरज़ू के सिवा और आरज़ू क्या है
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टैग : आरज़ू
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जिनाँ की कहते हैं यूँ मुझ से हज़रत-ए-वाइज़
कि जैसे देखी न हो यार की गली मैं ने
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आइना सामने अब आठ पहर रहता है
कहीं ऐसा न हो ये मद्द-ए-मुक़ाबिल हो जाए
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कब वो आएँगे इलाही मिरे मेहमाँ हो कर
कौन दिन कौन बरस कौन महीना होगा
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टैग : इंतिज़ार
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कहाँ क़िस्मत में इस की फूल होना
वही दिल की कली है और हम हैं
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मोहब्बत में वफ़ा की हद जफ़ा की इंतिहा कैसी
'मुबारक' फिर न कहना ये सितम कोई सहे कब तक
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कली रह गई ना-शगुफ़्ता हमारी
गिला रह गया ये नसीम-ए-चमन से
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असर हो या न हो वाइज़ बयाँ में
मगर चलती तो है तेरी ज़बाँ ख़ूब
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ख़बर इतनी तो है झोंके तिरे बाद-ए-ख़िज़ाँ पहुँचे
ख़ुदा मालूम तिनके आशियाने के कहाँ पहुँचे
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जो दिल-नशीं हो किसी के तो इस का क्या कहना
जगह नसीब से मिलती है दिल के गोशों में
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ये तसर्रुफ़ है 'मुबारक' दाग़ का
क्या से क्या उर्दू ज़बाँ होती गई
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टैग : उर्दू
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उधर चुटकी वो दिल में ले रहे हैं
इधर इक गुदगुदी सी हो रही है
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अपनी सी करो तुम भी अपनी सी करें हम भी
कुछ तुम ने भी ठानी है कुछ हम ने भी ठानी है
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दामन अश्कों से तर करें क्यूँ-कर
राज़ को मुश्तहर करें क्यूँ-कर
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निकलना आरज़ू का दिल से मालूम
हुजूम-ए-यास में रस्ता मिले क्या
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हँसी है दिल-लगी है क़हक़हे हैं
तुम्हारी अंजुमन का पूछना क्या
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बेश ओ कम का शिकवा साक़ी से 'मुबारक' कुफ़्र था
दौर में सब के ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ पैमाना रहा
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जाँ-निसारान-ए-मोहब्बत में न हो अपना शुमार
इम्तिहाँ इस लिए ज़ालिम ने हमारा न किया
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रहने दे अपनी बंदगी ज़ाहिद
बे-मोहब्बत ख़ुदा नहीं मिलता
इस भरी महफ़िल में हम से दावर-ए-महशर न पूछ
हम कहेंगे तुझ से अपनी दास्ताँ सब से अलग
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हवा बाँधते हैं जो हज़रत जिनाँ की
गली में हसीनों की आए गए हैं
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दिन भी है रात भी है सुब्ह भी है शाम भी है
इतने वक़्तों में कोई वक़्त-ए-मुलाक़ात भी है
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टैग : मुलाक़ात
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इक मिरा सर कि क़दम-बोसी की हसरत इस को
इक तिरी ज़ुल्फ़ कि क़दमों से लगी रहती है
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टैग : ज़ुल्फ़
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किसी से आज का वादा किसी से कल का वादा है
ज़माने को लगा रक्खा है इस उम्मीद-वारी में
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कब उन आँखों का सामना न हुआ
तीर जिन का कभी ख़ता न हुआ
क़िबला-ओ-काबा ये तो पीने पिलाने के हैं दिन
आप क्या हल्क़ के दरबान बने बैठे हैं
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जो क़यामत का नहीं दिन वो मिरा दिन कैसा
जो तड़प कर न कटी हो वो मिरी रात नहीं
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क़दम क़दम पे ये कहती हुई बहार आई
कि राह बंद थी जंगल की खोल दी मैं ने
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